एग्री इन्फ्रा फंड से दौड़ेगी खेती

किसानों के कल्याण के लिए राज्यों की भूमिका बढ़ाएगी केंद्र सरकार

सुरेंद्र प्रसाद सिंह

कृषि कानूनों को लेकर आंदोलन तो सुस्त पड़ गया है, लेकिन अभी भी कुछ दल राजनीति को धार देने में जुटे हैं। इसी बीच केंद्र सरकार अब सभी मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा कर कृषि विकास की योजनाओं को आगे बढ़ाएगी। केंद्र यह संदेश भी देगा कि उसकी भरपूर मदद के बाद भी किसान तभी आगे बढ़ेंगे जब राज्य पूरी मदद करें। कोशिश यह होगी कि कृषि योजनाओं को लेकर मुख्यमंत्री सर्वाधिक जागरूक हों ताकि योजनाएं परवान चढ़ें। इसी उद्देश्य से मुख्यमंत्रियों साथ अलग-अलग समूह में दो बैठकें होंगी।

इस बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री व वाणिज्य मंत्री भी होंगे। संभावना जताई जा रही है कि प्रधानमंत्री भी बैठक में कुछ देर के लिए शामिल हो सकते हैं। कृषि क्षेत्र की कमजोर कडि़यों की पहचान के साथ खेती की बुनियादी सुविधाओं को मजबूत बनाने और कृषि में रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए ‘बीज से बाजार’ तक की योजना को लागू करने को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ केंद्र सरकार गहन विचार-विमर्श करेगी।

 दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा के साथ पोषण सुरक्षा, दलहन व तिलहन में आत्मनिर्भरता, बागवानी, डेयरी और अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात की संभावनाओं को खंगालने के लिए चर्चा होगी। किसानों की आमदनी बढ़ाने वाली योजनाओं को समयबद्ध तरीके से लागू करने पर भी बात होगी।

मुख्यमंत्रियों के दो दिवसीय सम्मेलन में चर्चा के लिए पांच सूत्रीय एजेंडा तैयार किया गया है। कृषि क्षेत्र के सभी फ्लैगशिप प्रोग्राम को लागू करने से राज्यों में निवेश आने की संभावना अधिक है। राज्यों में जहां रोजगार बढ़ेगा, वहीं किसानों की माली हालत में सुधार होगा। एक लाख करोड़ रुपये का एग्री इन्फ्रा फंड के लागू करने से राज्यों में रोजगार सृजन का अनुमान है।

सरकारी अनुमान के मुताबिक 15 राज्यों में बुनियादी ढांचे पर 80,000 करोड़ रुपये के निवेश से कुल 15 लाख रोजगार सृजन की संभावना है। उत्तर प्रदेश में 8,000 करोड़ रुपये के संभावित निवेश से 1.5 लाख रोजगार सृजित होंगे, वहीं मध्य प्रदेश में 9,685 करोड़ के निवेश से 2.15 लाख नई नौकरियां सृजित हो सकती हैं।

कृषि क्षेत्र की सबसे कमजोर कड़ी फसल सर्वेक्षण है, जिसे लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। आंकड़े जुटाने के परंपरागत तरीके और उसकी खामियों का खामियाजा किसानों के साथ उपभोक्ताओं को भी उठाना पड़ता है। आंकड़ों की त्रुटियों से नीति निर्माताओं की चुनौतियां बढ़ जाती है। इस गंभी समस्या के निदान का डिजिटल तरीका भी खोजा और कर्नाटक में सफलतापूर्वक लागू किया गया है।

मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा में इसे सभी राज्यों में लागू करने का फैसला किया जा सकता है। खेत स्तर पर उत्पादन का आंकड़ा जुटाना इससे आसान हो जाएगा। इससे बीज, फर्टिलाइजर, पेस्टिसाइड, पैदावार का सटीक आंकड़ा और जमीन का पूरा ब्योरा आसानी से मिल जाएगा।

किसानों की आमदनी बढ़ाने की स्कीम पीएम किसान को सभी राज्यों में लागू कर दिया गया है। इसके तहत देश के 11.37 करोड़ किसानों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। 9.75 करोड़ किसानों को इसका लाभ मिल रहा है, बाकी किसानों के लिए राज्यों को पहल करनी है। ऐसे किसानों के आंकड़ों की पुष्टि जरूरी है। हालांकि किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) में मात्र 6.50 करोड़ किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। केसीसी के विशेष अभियान में दो करोड़ किसानों ने कार्ड लिया तो दो लाख करोड़ रुपये का कृषि कर्ज उन्हें मिल गया।

दलहन व तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिए खेती का रकबा, बीज की उत्पादकता, कारगर प्रसार प्रणाली, आकर्षक न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद सुनिश्चित किया जा रहा है। तिलहन के लिए 11,500 करोड़ रुपये की लागत से पाम आयल मिशन शुरू किया गया है। तिलहन के लिए कुल 27.99 लाख हेक्टेयर रकबा चिन्हित भी किया गया है। इसी तरह दलहनी फसलों के लिए वर्ष 2025-26 तक कुल 3.10 करोड़ टन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जो चालू वर्ष 2020-21 में 2.5 करोड़ टन है। बोआई रकबा में 14 फीसद और उत्पादकता में 23 फीसद की वृद्धि के साथ कुल पैदावार में 41 फीसद तक की वृद्धि का अनुमान है।

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