चुनाव जिला पंचायत अध्यक्ष का।
कोई भी समाज हो, उसकी अंदरूनी इच्छा न्याय और औचित्य की होती है। सामाजिक मूल्यों, मर्यादाओं और नैतिकता आदि की अपेक्षाएं इसी न्याय और औचित्य की तलाश में होती हैं। जिस समाज में ऐसा नहीं होता, वहां स्थिरता नहीं आती। निचले स्तर तक फ़ैली डेमोक्रेसी में कुछ ऐसा हो रहा है, जो किसी को सुहा नहीं रहा। जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव में जो हो रहा है/ जो होता है, या हमारी सम्पूर्ण डेमोक्रेसी को ही जिसका घुन लग गया है, उसके खिलाफ न्याय और औचित्य तलाशती सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी श्री बद्री प्रसाद की यह टिप्पणी। श्री सिंह अपने पुराने अनुभवों को लेकर इन दिनों बहुत अच्छी रपटें लिख रहे हैं।
–बद्री प्रसाद सिंह , सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी
उ. प्र. के जिला पंचायत चुनाव में दो मई को हुई मतगणना में जिला पंचायत सदस्य तथा ब्लाक विकास समिति के सदस्यों के परिणाम घोषित हो गए। परिणाम के बाद हर दल विजयी सदस्यों में अपने दल की संख्या बढ़ाकर बता रहा है।सत्यता यह है कि हर जिले में सर्वाधिक निर्दलीय सदस्य ही जीते हैं और उनकी सहायता से ही जिला पंचायत अध्यक्ष बनेंगे।इन सदस्यों को भय अथवा प्रलोभन से अपने साथ रखने के लिए प्रत्येक प्रत्याशी प्रयास करेंगे लेकिन अनुभव बताते हैं कि इस खेल में शासक दल ही विजेता बनता है ।इच्छुक अधिकांश बाहुबली और धन पशु प्रत्याशी सत्ता दल के साथ अधिक रहेंगे क्योंकि उनके पास धन के साथ पुलिस भी होती है जिसका सदुपयोग (?) करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। कुछ लोगों का विचार है कि इस चुनाव में भाजपा की करारी हार और सपा की विजय हुई है जो २०२२ के विधानसभा में भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। आगामी विधानसभा चुनाव में कौन दल विजय प्राप्त करेगा,यह तो भविष्य बताएगा लेकिन अधिकांश जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख तो सत्ता दल का ही बनेगा,यह ध्रुव सत्य है।
जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव का दो उदाहरण दे रहा हूं।
१- वर्ष २०००-०१ में मैं SP सिद्धार्थनगर था। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के समय स्थानीय मंत्री जी ने मुझे फोन किया कि SP संत कबीर नगर ,जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में एक शराब व्यवसाई की मदद कर रहे हैं जिसने अधिकांश ज़िला पंचायत सदस्यों को अपने घर पर बलात बंद किया है, मैं उन्हें समझा दूं नहीं तो उनका नुकसान हो जायेगा।वह SP मेरे अनुज वत थे,मैंने मंत्री जी की बात उन्हें बता कर सही स्थिति जाननी चाही तो उसने बताया कि शराब व्यवसाई पहले भाजपा में था लेकिन इस चुनाव में टिकट के कारण वह बसपाई होकर अध्यक्ष होना चाहता है और अधिकांश सदस्यों को मुंहमांगा धन देकर खरीद लिया है। मैंने सुझाव दिया कि तुरन्त SDM,CO उसके घर भेज कर इसकी पुष्टि करके बताएं।कुछ देर बाद SP ने बताया कि सभी सदस्य वहां स्वेच्छा से हैं।मैंने यह बात मंत्री जी को बता कर कहा कि SP दोषी नहीं है, वह परेशान न हों,अध्यक्ष व्यवसाई ही होगा और वह जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध हुआ।
२-संत रविदास नगर (भदोही) में एक बाहुबली विधायक अपनी पत्नी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाना चाहते थे। चुनाव से पूर्व वह अधिकांश सदस्य के घर स्वयं जाकर सदस्य के घरवालों के पैर छूकर पांच- छ लाख रुपए ,स्त्रियों के लिए ४-५ साड़ियां देकर अपने समर्थन की कसम खिलाकर अधिकांश सदस्यों का समर्थन लेकर निर्विरोध अध्यक्ष बना लिए। मजेदार बात यह हुई कि अध्यक्ष बनने के एक सप्ताह बाद विधायक जी ने ३-४ वाहन से अपने गुंडों को उन्हीं सदस्यों के यहां पुन: भेज कर दिया हुआ धन वापस मंगा लिया और भयवश कोई सदस्य विरोध न कर सका। विधायक जी काफी समय से जेल का आनन्द ले रहे हैं।
इस चुनाव में जिला पंचायत सदस्य गण,बीडीसी सदस्य ,चुनाव जीतने हेतु धन खर्च कर भविष्य के लिए निवेश किया है, जिसे वह अध्यक्षी और प्रमुखी के चुनाव में व्याज सहित वसूलेंगे और जिला पंचायत अध्यक्ष,ब्लाक प्रमुख,ग्राम प्रधान गण चुनाव जीतने के बाद अपने खर्च किए धन का चक्रवृद्धि ब्याज से पांच साल तक वसूलते रहेंगे। और गरीब जनता ? पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा के शब्दों में – कोई फर्क नहीं पड़ता राजा राम हो या रावण,जनता तो सीता है,यदि रावण राजा हुआ तो वह वनवास में जंगल से हर ली जाएगी, यदि राम राजा हुए तो वह अग्नि परीक्षा के बाद भी परित्याग कर जंगल भेज दी जाएगी।कोई फर्क नहीं पड़ताराजा कौरव हो या पांडवजनता तो द्रौपदी है,यदि कौरव राजा हुए तो सभा में वह चीर हरण के काम आएगी, यदि पांडव राजा हुए तो वह जुए में दांव पर लगा दी जाएगी।