जौनपुर शिक्षा, साहित्य और संस्कृति का नाम
जौनपुर पूरब की राजधानी; काशी, प्रयाग और अयोध्या की परछाईं
किसी तथाकथित जौनपुर पैटर्न को लेकर सामना के संपादक संजय राउत के लिखे-पढ़े पर बात करें, आइए, उसके पहले एक नज़र साकीनाका, मुंबई में ३२ साल की एक महिला के साथ किये गए दुष्कर्म और उसके साथ हुई बर्बरता पर एक नज़र डाल लें। महिला ( विनीता, कल्पित नाम) अनुसूचित जाति की थी। वह साकीनाका जंक्शन के पास अपनी मां और ११ व १५ साल की दो बेटियों के साथ किराये की खोली में रहती थी। ९ सितम्बर की रात मोहन चौहान नाम के एक आरोपी ने उसके साथ बलात्कार किया। फिर उसे मारा-पीटा,और उसके यौनांग को भी एक रॉड डालकर क्षत-विक्षत कर दिया। घायल विनीता को राजावाड़ी अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन उसके शरीर से बहुत खून निकल चुका था। अगले दिन अस्पताल में उसकी मौत हो गयी।
विनीता २०१५ में पति से अलग हो गयी थी, और तभी से वह चिंता और घबराहट की शिकार थी। वह विक्षिप्त जैसी दिन भर इधर-उधर भटकती रहती। घर का खर्च उसकी मां ही चलाती थीं। उनकी पास में ही फुटपाथ पर सब्जी बेचने की एक छोटी सी दुकान थी। जिसे कोविड लॉकडाउन के दौर में भी मुंबई महानगरपालिका ने फुटपाथ पर किये अतिक्रमण का हवाला देकर तोड़ दिया था। इससे परिवार की हालत और बिगड़ गयी थी। तब से, उनके पास जो थोड़ी-बहुत पुरानी बचत थी, उसी से परिवार का जीवन-यापन चल रहा था।
उसके साथ इस तरह दरिंदगी की गयी थी कि उसे देख कर डॉक्टरों को दिल्ली के निर्भया कांड की याद आ गयी।
मुंबई पुलिस ने आरोपी को जल्द ही ढूंढ निकाला। वह ड्राइवर है, और उसी इलाके में फुटपाथ पर रहता है। १३ सितम्बर को एक प्रेस कांफ्रेंस करके मुंबई पुलिस आयुक्त हेमंत नगराले ने, बताया कि आरोपी मोहन चौहान की लड़की पहले से एक-दूसरे को जानते थे। घटना के समय उनका पैसे के किसी लेन -देन को लेकर विवाद हुआ। हमले के वक्त आरोपी नशे की हालत में था। पुलिस आयुक्त महोदय के कहे के निहितार्थ को समझना कठिन नहीं है।
महाराष्ट्र में पिछले कुछ महीनों में कई जगह बलात्कार की घटनाएं हुई हैं। इन्हें लेकर भाजपा ने शिवसेना सरकार पर कड़ा हमला किया है। साकीनाका मामले को भी भाजपा ने सरकार की विफलता से जोड़ा। फिर, इस मामले में भीम आर्मी और जय भीम संगठन भी मैदान में आ गए। उन्होंने पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए साकीनाका पुलिस स्टेशन का घेराव और धरना-प्रदर्शन किया। मामले में अनुसूचित जाति/ जनजाति उत्पीड़न का मामला भी दर्ज़ करने की मांग उठी। महिला आयोग ने भी सक्रियता दिखाई। आनेवाले तूफ़ान को भांपते हुए महाराष्ट्र सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए पीड़िता की बेटियों के लिए सहायता राशि घोषित किया, और १४ सितम्बर को खुद मुख्यमंत्री श्री उद्धव ठाकरे ने पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की और इस मामले को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाने को कहा, ताकि पीड़िता को जल्द से जल्द न्याय मिल सके। इस मीटिंग को लेकर और जो खबरें आईं, वे मुंबई में बाहर से आकर रह रहे लोगों के लिए चिंताजनक थीं। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि `दूसरे प्रान्त से आये लोगों का रजिस्टर बनाइए। वे कहाँ से आते हैं, कहां जाते हैं, इसकी जानकारी रखिए।’ इस बारे में महाराष्ट्र टाइम्स की खबर का शीर्षक देखिये–परप्रांतीयांची नोंद ठेवा; ते येतात कुठून, जातात कुठे याची माहिती ठेवा: मुख्यमंत्री। साथ ही, मुख्यमंत्री ने कहा- `अपराध की घटनाओं में ऑटो रिक्शे भी इस्तेमाल हो रहे हैं। इन्हें कौन खरीद रहा है, कौन बेच रहा है, इसकी सूचना भी पुलिस स्टेशन को देना जरूरी किया जाए।’ अब, यह बात किसी से छुपी नहीं है कि ज्यादातर रिक्शा चालक और मालिक उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं। और परप्रांतीय का भी मोटा अर्थ उत्तर प्रदेश-बिहार से आये लोग ही है। और, ये सब नतीजे इसलिए निकाले जा रहे थे, और ये सभी आदेश इसलिए दिए जा रहे थे क्योंकि साकीनाका कांड का आरोपी मोहन चौहान उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का रहने वाला था।
तकरीबन साथ-साथ ही संजय राउत ने सामना में लिखा– `साकीनाका प्रकरण की जांच गहराई में जाकर करें तो मुंबई में `जौनपुर’ पैटर्न ने कितनी गंदगी कर रखी है, यह पता चल जाएगा।’
परप्रांतीयों के लिए रजिस्टर वगैरह रखे जाएँ, वे कहाँ से आते हैं, कहां जाते हैं, आदि की जांच हो; इसमें कुछ नया नहीं है। शिवसेना की यह पुरानी पोजीशन है। और २००८ से ही यह आरोप लगा रही है कि मुंबई में अपराध की घटनाएं दूसरे प्रांत से आये लोगों की वजह से बढ़ी हैं। इस अवधारणा को न तो शिवसेना ने कभी तथ्यों के साथ रखा, और न ही परप्रांतीय नेताओं या उनके संगठनों ने ही इस अवधारणा को कभी तथ्यगत चुनौती दी। महाराष्ट्र सरकार की और से भी कभी इस बात की कोई कोशिश नहीं हुई कि मुंबई, ठाणे और पालघर जिले के अपराध के पिछले कुछ सालों के आंकड़े निकाल कर उन्हें जांच लिया जाए।
लेकिन सामना ने उसी बात को अब जिस रूप में विस्तार दिया है, उसके अर्थ और परिणाम दोनों भयानक हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड , छत्तीसगढ़ और उससे लगा अवध, पूर्वी मध्य प्रदेश, उत्तरी ओड़ीसा और पश्चिमी बंगाल का जो सदियों से प्रवास और प्रव्रजन ( माइग्रेशन ) प्रभावित इलाका है, यह उसकी अस्मिता पर ही सीधा हमला है। जौनपुर पैटर्न यानी मनी आर्डर इकॉनमी। जौनपुर पैटर्न यानी अपने घर-गांव से दूर बिना परिवार के अकेले रह रहे लोग। उनका रहन-सहन। उनकी सोच। उनकी विचार पद्धति। उनके कार्य व्यवहार। दूसरे समाजों से उनका लेना-देना। संजय राउत इन सब पर एक साथ सवालिया निशान लगा रहे हैं। किसी एक घटना या किसी एक व्यक्ति के किये को लेकर आप सारे समाज को कटघरे ,में खींचे यह उचित नहीं है। .
ये इलाके बरसों से प्रवास और प्रव्रजन की त्रासदी में जी रहे हैं। संजय राउत उस घाव पर नमक छिड़क रहे हैं। बिना जाने कि जौनपुर क्या है। पूर्वांचल प्रथम वेबसाइट की यह डमी २ अक्टूबर को गांधी जयंती से शुरू की जानी चाहिए थी, लेकिन जौनपुर क्या है, इसकी बानगी देने के लिए और अपना प्रतिवाद सामने रखने के लिए अभी बन रही वेबसाइट आज से ही ऑनलाइन की जा रही है। जौनपुर प्रकरण पर आज से रोज पढ़ें, खबरें , प्रतिक्रियाएं और जौनपुर के इतिहास से जुडी सामग्री। फिर, २ अक्टूबर को विशेष सम्पादकीय में इन सबका सम अप.
इस बीच हम कुछ खबरें भी जोड़ते चलें। शुक्रवार १७ सितम्बर को बोरीवली में पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान ने अपनी एक बैठक में श्री राउत के कहे का विरोध करने का फैसला लिया। संस्था ने उनसे मांग किया है कि वे अपने लिखे को वापस लें। किन्हीं इक्का-दुक्का घटनाओं को लेकर किसी पूरे के पूरे समाज को कटघरे में खींच देना गलत है। संस्था ने यह भी स्पष्ट किया कि उत्तर भारतीय मेयर बनाये जाने या हिंदीभाषियों को गोलबंद करने की भाजपा की किसी राजनीति से संस्था का कोई लेना-देना नहीं है। संस्था के प्रवक्ता श्री सुनील पांडे ने कहा कि यह शुद्ध सैद्धांतिक विरोध है, और यह लड़ाई दूर तक लड़ी जाएगी।
कल पढ़ें- जौनपुर स्त्री बुद्ध कही जानेवाली भगवती तारा की भूमि है। वहां प्रतिष्ठित थीं आठ ताराएं। साथ में जौनपुर पैटर्न की बात किस पर चोट? किस पर वार? जौनपुर से सामना का रहा है पुराना लगाव।