नीके रहें कुसुम के बाबू

सामुदायिक जीवन ग्रामीण व्यवस्था की सबसे मज़बूत कड़ी थी।  उसमें बहुत कुछ टूटा है।  लेकिन जो भी बचा है, वह इस बात की आस दिलाता है कि सब कुछ संवार लेना मुश्किल नहीं।  जाने-माने पत्रकार श्री सुनील श्रीवास्तव की तीज को लेकर लिखी पुराने दिनों की याद दिलाती यह एक निर्मल तस्वीर –

आज दिन भर धान की रोपाई हुई थी .कल तीज है .कुसुम के बाबू महिन्ना भर से परेशान थे .पर साल साड़ी हल्लुक  लाये थे . इस साल ज़रा बेसी दाम की ले आने की बात कर रहे थे . हम तो बोली थी कि जाए दें ,ढेर महंग साडी का क्या काम है? पूजा पाठ में नयी साडी पहनी जाती है, यही बदे कहे थे .नहीं तो साड़ी बहुत है ,लेकिन पुरान है. अब इतना भी गए गुजरे नहीं हैं कि सुहाग का बरत पुरान साड़ी पहिन के रहें .कुसुम की शादी हो गयी लेकिन कुसुम की माई कुसुम के बाबू ही कहती है. उसे एक लड़का है – मोती।  
कुसुम के बाबू को भगवान् जीव जांगर से रखें ,यही मनौती मानती रहती हूँ .लीलार में सेन्हुर बहुत ज़रूरी है .जो सेन्हुर भरे है मांग में , चिता में आग वही दें . ई  धनभाग से मिलता है .सरग में जाय कि नरक में ई तो भगवान् के हाथ में है  .जो जैसा करम करता है, वही हिसाब से सरग – नरक मिलता है .
कुसुम  के बाबू भी दिनभर बरधा ( बैल ) की तरह काम में जुटे रहते हैं . कल तनिक देर हो गयी, तो नाराज नहीं हुए, बल्कि कहने लगे ,” खर- सेवर हो जाता है तो तबेत खराब हो जाती है . कुछ नहीं, तो रात की रोटी और पियाज ही दे दिया करो .” ई मरद भी अजीब हैं दूसर मरद हैं कि गारी देते हैं ,चार लबदा मार भी देते हैं लेकिन ई कभी नहीं यह सब किया .गुस्साते है , खाना नहीं खाते . एक बात है कि माफी मांगने पर माफ़ भी कर देते हैं . ई साल महंगी साड़ी ले आये .हमें लगता है डेढ़ सौ की तो होगी ही . आज कल तो हर चीज में आग लगी है .खाद गोबर कुल महंगा  ऊफ्फर पड़े जाय. 
तीज का त्यौहार बीत जाय, तो चार बिस्सा बचा है रोपने के लिए वह भी ख़तम हो जाएगा . यह बरिस देर हो गयी. बेहन टाइम से मिल जाता ,तो सब समय से हो जाता लेकिन जादा देर नहीं हुआ है .दस दिन देर से कटाई होगी
पीयर सेन्हुर, आलता ,टिकुली ,हंसुली सब सहेज कर कल रात को ही रख दिए थे नाहीं तो कोई सामान टाइम से नहीं मिलता है तो ख्सियाहट लगती है .चुड़िहारिन से चूड़ी सादी वाली पहन लिया था .यह साल ज्यादा महंगी नहीं पहनी , नहीं तो कामदारी वाली देखने बहुत अच्छी थी .जितना पैसा होगा, उतना ही सिंगार पटार ठीक है .दुसरे का लिलार देख कर आपन माथा नहीं खजुआना चाहिए .
रात को ही कुसुम के बाबू के लिए खरमेटाव बना कर रख दिया था . लेकर खा लेंगे .मनसुख की माई आयेगी, तो पोखरा नहाने जाना होगा .वहां महादेव का मंदिर भी है ,पूजा पाठ हो जाएगा .मेहदी तो खैर परबतिया लगा दी थी .पता नहीं कहाँ से ले आती हैं खूब रचता है हाथे में. बेचारी बहुत भली है . भौजी – भौजी दिन भर करती रहती है . दयालू कह रहा था कि यह जाड़ा में लगन है .पाहून सूरत में किसी मिल में काम करते हैं .मजे का तनखाह पाते हैं .दयालू यह भी कह रहा था कि पाहून बियाह के बाद घर नहीं छोड़ेंगे, बलुक नोकरी पर ले जायेंगे . रन -बन में जहां रहा ये बहिनी सुहागन बन कर मजे में रहा .दूधो नहा ,पूतों फला .
सांझ होते ही परबतिया उसकी माई .मनसुख की भौजी . सुमिरन की पतोह सब आ गयीं ,पोखरा नहाने के लिए .पूजा का सामान ही रख लिया . जैसे ही चलने को हुए कि सुमिरन की पतोह लगी गीत गाने – जलेबी लिया दा बिहाने बदे- नचाइब बलमुआं अंगनवां में – बहुत सुन्दर स्वभाव है उसका .गाना भी बहुत याद है और भगवान् ने गला भी नीक दिया है . इज्जत सबकी करती है .
खूब नहान हुआ पोखरा में. सुमिरन की पतोहिया खूब पौड़ी ( तैरना ). ई पार से ऊ पर दो बार पौड़ कर आई गयी .भगवान् बस गोद भर दें बेचारी का .दो साल हो गया बियाह के जवाहिर की पतोह का गोद तो एक साल बाद ही भर गया .इसका भी भर जाएगा .दो ही साल तो हुआ है अभी . रास्ते में सीता की बहिन पूछने लगी कि भौजी मोती भैया की शादी कब करोगी . बहिनी देखहरू तो बहुत रहे हैं. अब जहां भाग्य बैठे, वहीं हो जाएगा, उम्मीद हैं कि फगुआ से पहले पतोह आ जायेगी.
नहा धो कर सब मंदिर पर आ गयीं. बिसनाथ पंडित भी आ गए . सभी ने पूजा पाठ किया .मांग भर सेन्हुर लगाया . फल फूल भगवान को चढ़ाया । बिसनाथ पंडित ने गौरी मैया और महादेव की पूजा विधिवत कराया,कथा भी सुनाया ,दान दक्षिणा भी दिया गया – हे भगवान दू रोटी भले कम देना,लेकिन कुसुम के बाबू को कोई दुःख तकलीफ मत देना । उनकर दुःख तकलीफ हमको दे देना।सरधा के साथ सभी हाथ जोड़कर कर घर आ गयीं ।
कुसुम के बाबू पैड़ा निहार रहे थे । देखकर बहुत खुश हुए,” हो गयी पूजा ठीक से न ? बिसनाथ पंडित आये थे न ? ” 
” हां, सब मजे से हो गया । पंडित जी ने बिधिवत पूजा पाठ ,कथा , आरती सब  ठीक से करा दिया ।सवा रुपया भी दे दिया ।” 
” ठीक किया, पंडित जी लोगों की इसी सब समय में तो चार पैसे की कमाई हो जाती है।बिहाने सिद्धा दे देना ।” 
कुसुम के बाबू का गोड पड़ने लगी, तो दूनो बांह पकड़ के उठा लिया .तोहार जीव जांगर बनल रहे .हमरे बदे तो तू पूजा पाठ सब करती हो . तीज- ज्युतिया का बरत लड़का भतार के लिए रखती हो . तोहरे मान -मनौती से घर में सब है .नून रोटी की कभी कमी नहीं हुई . आँख भर आई .झट से घर में घुस गयी . .देखा तो चना भिगो के रखा हुआ है .बहुत खियाल रखते हैं .सोचे होंगे कि याद नहीं पडेगा, तो सवेरे बरत कैसे तोड़ेगी . सातो जनम तोही मिलना ये कुसुम के बाबू .
सवेरे गोरू को हौदी में लगा कर गए जलेबी ले आये . मन्ना बाबा हर साल तीज के बिहाने जलेबी बनाते हैं . दही घर में था ही .बरत टूटा .लेकिन कमजोरी नहीं आयी .लग ही नहीं रहा था कि चौबीस घंटे भुक्खल पियासल रहे हैं .
हे महादेव जी कुसुम के बाबू नीके रहें
चार बिस्सा रोप के फिर शाम को इत्मीनान से खटिया पर लोटेंगे। .

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