पत्रकारिता की एक ज़रूरी किताब
सुनील श्रीवास्तव
अभी कुछ ही दिन हुए मेरे पास एक पुस्तक आयी ‘कम्युनिकेशन ’ ,जिसमें दर्ज है पत्रकारिता का इतिहास – दो सौ वर्षों का .यह एक प्रामाणिक पुस्तक है. परम्परागत लेखन से बिलकुल जुदा – अपने भीतर एक इतिहास को लेकर .
इस पुस्तक में लेखक ने लिखा है कि पत्रकारिता के उद्गम और विकास में विज्ञान और तकनीक के साथ पत्रकारिता ने कैसे अपनी यात्रा प्रारम्भ की ,और सूचना को सुरक्षित रखने को संभव किया. इसके पहले श्रुति की परम्परा थी, जो गुरु के माध्यम से समाज तक पहुँच पाती थी.लेकिन जन-जन तक पहुंचाने में विज्ञान और तकनीकी ने इसे शनैः -शनैः आगे बढ़ाया और जन आकांक्षाओं की पूर्ति की. १५ वीं शताब्दी में जर्मनी से हुई शुरुआत आज पांच सौ वर्ष से ज्यादा की अपनी एक लम्बी यात्रा तय की है ,जो जनमाध्यमों के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है .
कुल छह अध्याय हैं इस पुस्तक में, जिसमें विज्ञान और तकनीक के साथ संचार के उद्गम, विकास ,स्वाधीनता आन्दोलन में समाचार पत्रों की भूमिका .गांधी जी की पत्रकारिता आदि के बारे में विस्तृत जानकारी है .
१६७४ में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई और १७७२ में मद्रास में प्रिंटिंग प्रेस लगाया. पहला अखबार हिक्की गजट प्रकाशित हुआ ,जिसने हिंदुस्तान में पत्रकारिता की नींव रखी . फिर धीरे- धीरे विकास की गति तेज होती गयी. देश की स्वतंत्रता आन्दोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया,.इसके मद्देनजर अंग्रेजों ने कानून भी बनाये, जिससे वे अपने विरुद्ध उठने वाली आवाज को दबा सकें. जिनमें वर्नाकुलर एक्ट भी एक है .इन सभी का इस पुस्तक में विस्तार एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में मौजूद है .
३० मई १८२६ में उदंड मार्तंड का प्रकाशन कलकत्ता से शुरू हुआ, जो हिन्दी का पहला अखबार था . इसके बाद हिन्दी के अखबारों का सिलसिला प्रारम्भ हुआ, लेकिन इसकी प्रकाशन अवधि बहुत कम थी – ४ दिसंबर १८२७ को इसका अंतिम संस्करण निकला .लेकिन इस अखबार ने दूसरो को प्रोत्साहित किया ही ,इस बात से असहमति नहीं जताई जा सकती . उसके बाद अख़बारों के प्रकाशन का सिलसिला शुरू हुआ जो बनारस ,मध्य प्रदेश सहित लगभग सभी प्रान्तों तक पहुंचा . निकले ,जिसमें बनारस अखबार ,नवभारत ,आज जैसे समाचार पत्र थे .
.गांधी जी की पत्रकारिता में योगदान को भी काफी विस्तार दिया गया है .गांधी जी को इस बात का एहसास हो गया था कि सामाजिक उत्थान सहित राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति भी बिना अखबार के संभव नहीं है . .उन्होंने , हरिजन , इंडियन ओपिनियन जैसे अखबारों के जरिये अपने लक्ष्य के साथ जन जन तक पहुंचे . .पत्रकारिता के इतिहास में यह “गांधी एरा” के नाम से जाना जाता है .
मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि विजय भास्कर के इस पुस्तक की श्रेणी की कोई पुस्तक कम से कम मुझे नहीं दिखी ,जिसमें दो सौ वर्षों के समाचार पत्रों का इतिहास हो .इस पुस्तक के अंत में १७८० से लेकर १९४७ के मध्य प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की सूची है , जिसमें उनके संस्थापकों ,संपादकों ,आवृतियों एवं उनके प्रकाशन स्थल का भी नाम शामिल किया गया है .विशेष संदर्भों के साथ १७८० से लेकर १९८० समाचार पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका को भी इस पुस्तक में चिन्हित किया गया है .ऐतिहासिक तथ्यों तथा आंकड़ों के संकलन में निश्चित ही काफी परिश्रम करना पडा होगा, जिसके लिए वह साधुवाद के पात्र हैं.विजय भास्कर ने एक बातचीत में बताया कि इस पुस्तक को लिखने में लगभग तीन वर्ष लगे .अब वे इसको हिन्दी में भी प्रकाशन की योजना पर कार्य कर रहे हैं और अनुवाद भी स्वयं कर रहे हैं .
विजय भास्कर एक विज्ञान लेखक के तौर पर पहले ही ख्याति अर्जित कर चुके हैं, विज्ञान लेखन में उन्हें विशेष रूप से भविष्य विज्ञान ( फ्यूचरोलॉजी )में दक्षता हासिल है .उन्होंने अपनी पत्रकारिता टाइम्स ग्रुप से शुरू की और नवभारत टाइम्स ,प्रभात खबर ,लोकमत समाचार .दैनिक हिन्दुस्तान आदि समाचार पत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया .तीन वर्षों तक ब्रिटिश उच्चायोग , नई दिल्ली के ‘प्रेस एंड पब्लिक अफेयर्स ‘विभाग में वरिष्ठ संपादक रहे . ‘ सेंट्रल ऑफिस ऑफ इन्फार्मेशन और ‘ फारेन एंड कॉमनवेल्थ ऑफिस ‘लन्दन में विशेष प्रशिक्षण भी प्राप्त किया .
इसके पूर्व विजय भास्कर की एक पुस्तक हिन्दी में ‘ बिहार की पत्रकारिता का इतिहास ‘ नाम से प्रकाशित हो चुकी है. अंग्रेजी में लिखी गयी विजय भास्कर की यह पुस्तक न सिर्फ पत्रकारिता के विद्यार्थियों, बल्कि अध्यापकों के लिए भी उपयोगी है . उम्मीद है कि हिन्दी में भी शीघ्र ही उपलब्ध होगी . चित्र: विजय भास्कर