पिता ने दीपा को परिचय दिया और उसने इतिहास रच दिया

अपनी बेटी को परिचय दीजिए। आपली मुलगी ची ओड़ख द्या। आपणी दीकरी नी ओड़ख दियो। किसी कागज पर अपनी बेटी का परिचय लिखें। उसे पांच बार पढ़ें। परिवार में किसी स्त्री को भी ऐसा करने को कहें। मित्रों-परिजनों में भी पांच लोगों को पढ़ायें। न तो खुद ही पचीस बार और पढ़ें।

दहेज और दिखावे के खिलाफ,पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान की १५ जून, २०१२ की विलेपार्ले, मुंबई की बैठक में एक सवाल उठा——लोग बेटों का तो परिचय देते हैं, बेटियों का नहीं। क्यों? के कई जवाब थे। एक जवाब था कि बेटों को ही उत्तराधिकार मिलता है, वे ही पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए उनका ही जिक्र किया जाता है। एक दूसरा जवाब यह था कि बेटियों को लोग पढ़ा-लिखा तो रहे हैं, उन्हें घर से बाहर भी निकाल रहे हैं, पर उनकी सुरक्षा वगैरह को लेकर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं । हजारों साल से औरतों पर जो अत्याचार हुए हैं, उनकी जो लूट और खरीद-बेच हुई है, उसने सारी ही मानवता के सीने में डर का एक ग्लेशियर बैठा दिया है। केवल नाम और रूप, आकार और प्रकार बदला है, वह शोषण बाकी किसी न किसी रूप में चलता ही चला जा रहा है, इसलिए ग्लेशियर पिघलने का नाम ही नहीं लेता। चकले चल रहे हैं, डांस बार चल रहे हैं, अकेले एशिया में ही साल में १० से १२ लाख लड़कियों की ह्यूमन ट्रैफिकिंग (खरीद-बेच) होती है। अरबों-खरबों डॉलर का कारोबार बन गया है यह। स्त्री की देह को सामने रख कर ही तरह-तरह के उत्पाद भी बनाये जा रहे हैं। आटा और दाल और अखबार और पत्रिका बेचने के लिए भी औरत की ही देह बेची जा रही है। हर ओर से उसे सेक्स का साधन ही बनाये रखने के इंतजाम हैं। हर ओर से उसके शरीर पर ही नजर है। इसलिए ग्लेशियर पिघले भी तो कैसे पिघले। इसलिए कहीं बाल विवाह शुरू हो जाता है। कहीं घूंघट नीची से नीची होती चली जाती है। कहीं बुर्का ज्यादा से ज्यादा कसता चला जाता है। कहीं पाबंदियां, चारदीवारियां और बेड़ियां बढ़ती जाती हैं। हमारा सारा व्यवहार डर के उस ग्लेशियर के अधीन हो जाता है। इसलिए हम न चाहते हुए भी वह सब करते चलते हैं जो वह ग्लेशियर कहता है। कई बार सेक्सुअलिटी के बारे में हमारी अपनी समझ को भी वह ग्लेशियर बिगाड़ देता है। अनेक बार अनजाने ही हम भी वही दोहराने लगते हैं, जिसकी वजह से वह ग्लेशियर बना है। इस सबका मिला-जुला नतीजा यह हुआ है कि हमने औरत को बचाने-बचाने में ही उसे परिचय विहीन कर दिया है। उसका व्यक्तित्व खत्म कर दिया है। उसका आत्मविश्वास, उसकी ताकत तोड़ दी है। उसकी प्रतिकार और परिष्कार की शक्ति कमजोर कर दी है। इसलिए शोषण पर शोषण होता चल रहा है। इसलिए बेटी के पैदा होते ही बाप चेहरा लटका कर बैठ जाता है। और बेटी की सारी किलकारियों और हुलकारों को खत्म कर देता है।

पिघलेगा डर और बिगाड़ का यह ग्लेशियर तब, जब एक बड़ी रोशनी जला कर हम इस ग्लेशियर को पिघला देंगे।

वह रोशनी है-बेटी को परिचय दे दीजिए। नाम दे दीजिए। व्यक्तित्व दे दीजिए। विश्वास और साथ दे दीजिए।

तो कीजिए रोशनी—एक कागज पर लिखिए अपनी बेटी का परिचय। उसे पांच बार पढ़िए। घर-परिवार की किसी स्त्री को भी ऐसा ही करने को कहें। पांच परिजनों को भी पढ़ाइए। न पढ़ा सकें तो पचीस बार खुद ही और पढ़ें। और उसे जिस भी धर्मग्रंथ को मानते हैं आप, उसके साथ रख दीजिए।
(जो पिता नहीं हैं, वे परिवार की किसी और स्त्री, मां, बहन, ताई, बुआ, मामी, नानी किसी के भी बारे में लिखें, और ऊपर जैसा कहा गया, वैसा करें। स्त्री सदस्य हैं, तो खुद ही अपना परिचय लिख कर इस तरह पढ़ें और परिजनों को पढ़ायें। ) सप्ताह भर यह परिचय यज्ञ हुआ तो फिर साल में इसे तीन बार करने के बाद बेटी का परिचय बनने और उसे कहने में कोई रुकावट नहीं आयेगी। उसके अनेक संकट दूर हो जायेंगे। यह यज्ञ सपत्नीक किया जाये, तो इसके परिणाम और बढ़ जाते हैं। बहू के बारे में भी पढ़ा जाए, तो फिर तो पूरा परिवार ही आश्वस्त और विश्वस्त हो जाता है।

चाहें तो मान लें, ब्रह्मा ने इस यज्ञ को सनत्कुमारों को बताया था। उन्होंने इसे अनुसूया को पढ़ाया। ब्रह्मा, विष्णु और शिव के अपने शील की परीक्षा लेने आने पर अनुसूया ने केवल इस यज्ञ का स्मरण किया, और वे तीनों बाल रूप में आ गये। बच्चे बन गये। और अनुसूया त्रिदेवों की माता हुईं। और, ब्रह्मा के इस पुत्री यज्ञ को पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान ने २०१२ में लोक के लिए फिर से प्रकाशित किया।

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