पूर्वांचल के विकास और बढ़ाव में भागीदार हों
पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उससे लगा अवध, पूर्वी मध्य प्रदेश, ओड़िसा और पश्चिम बंगाल का पश्चिमी इलाका एक लम्बे समय से प्रवास और प्रव्रजन ( migration ) की पीड़ा झेल रहा है। विस्थापन भी अब इस प्रवास का हिस्सा बन गया है। दुनिया का प्रवास और प्रव्रजन का संभवतः सबसे बड़ा क्षेत्र है। गिरमिटिया मज़दूरी के दिनों से लेकर कोरोना महामारी तक प्रवास और प्रव्रजन को लेकर जो स्थितियां बनी हैं, वे हर किसी को झकझोरती हैं। परंपरागत उद्योग-धंधों के छीज जाने और खेती के सीमान्त होते चले जाने से कई बार तो लगता है जैसे कि पूरा का पूरा इलाका ही रोजगार की तलाश में विस्थापित होकर सड़कों-चौराहों पर आ खड़ा हुआ है। हालात ये हैं कि २०१५ में लखनऊ में चपरासी की ३६८ जगहों के लिए २३ लाख से अधिक लोगों ने अप्लाई किया जिनमें पीएचडी और इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स तक शामिल थे। वह स्थिति, कमोबेश ऐसी ही, सर्वत्र बनी हुई है। देश के किसी भी महानगर को देख लीजिए , पूर्वांचल से आनेवाली कोई भी रेलगाड़ी आती है, तो ऐसा लगता है जैसे कि जिस इलाके से यह रेलगाड़ी आ रही है, उस इलाके में कोई भीषण दुष्काल फैला है, जिससे त्रस्त लोग शरण के लिए भागे चले आ रहे हैं। यदि आपने कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का जय सोमनाथ उपन्यास पढ़ा हो तो उन्होंने देलवाड़ा के पतन के बाद भागते हुए लोगों को जो चित्र खींचा है, रेल स्टेशनों पर वह दृश्य याद आ जाता है।
यह परिस्थिति इस इलाके का समुचित आर्थिक-औद्योगिक विकास न होने, उद्योग-उद्यम, व्यापार-व्यवसाय, श्रम व अध्यवसाय की संस्कृति न बनने और आबादी के बढ़ाव पर कोई नियंत्रण न होने से आयी है। पूर्वांचल को समृद्ध और समुन्नत बनाने के लिए एक बड़े सांस्कृतिक बदलाव की जरूरत है, जो नौकरी की संस्कृति को हटा कर उद्योग-उद्यम, कारोबार-व्यापार, श्रम व अध्यवसाय की संस्कृति को स्थापित करे और इलाके के आर्थिक-औद्योगिक विकास को बढ़ाये। पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान और पूर्वांचल प्रथम इन्हीं उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के मंच हैं। पूर्वांचल प्रथम का काम बड़ी आर्थिक गतिविधियों के लिए आधारभूमि, प्रारूप और आवश्यक डेटाबेस बनाना भी है।
पूर्वांचल के परत दर परत विभाजित समाज में विकास और बढ़ाव के लिए जरूरी संवाद बनाने की भी जरूरत है। संवाद कारगर हो, इसके लिए जरूरी है कि संवाद किसी भी किस्म की दलगत राजनीति से परे, निष्पक्ष और सत्यनिष्ठ हो। पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान और पूर्वांचल प्रथम के काम निष्पक्षता, ईमान और पार्टी-लेस मीडिया, मीडिया की संकल्पना के गिर्द ही नियोजित किये गए हैं। पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान और पूर्वांचल प्रथम विकास और बढ़ाव की गति तेज करने के लिए सरकार और समाज के बीच सेतु भी होंगे। यह काम भी तभी संभव है, जब पूरी तरह निष्पक्षता और स्वतंत्रता से किया जाए।
साथ ही, पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान और पूर्वांचल प्रथम के क्षेत्रीय इतिहास लेखन को बढ़ावा देने, नाग परिपथ की परिकल्पना को आगे बढ़ाने, भारतीय भाषाओँ को मज़बूत करने व हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने, सामाजिक घटनाओं के सम्यक अध्ययन के लिए समाज विज्ञानं संस्थान बनाने जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक प्रयोजन भी हैं, इन सब कामों के लिए हमें लेखकीय सहयोग से लेकर आर्थिक और इंतजामिया सहयोग तक अपेक्षित हैं। यह अपने घर-गाँव के आर्थिक-औद्योगिक विकास और उसके लिए जरूरी सांस्कृतिक बदलाव से जुड़ने का एक समुचित मौका है। पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान को दिए अनुदानों पर आयकर अधिनियम की धाराओं ३५ (१) और ८० (जी) के तहत छूट मिली हुई है।