किसकी मनोकामना पूरी करेंगे देवा-महादेवा?

महादेवा लोध क्षत्रियों का धर्मस्थल 

देवा और महादेवा दोनों की ख्याति है कि वे मनोकामनाएं पूरी करते हैं। देवा यानी देवा शरीफ। और महादेवा यानी लोधेश्वर शिव मंदिर।  दोनों की तुलना करके योगी आदित्यनाथ ने बाराबंकी और आसपास के जिलों की राजनीति गरमा दी है।     बाराबंकी । योगी आदित्यनाथ ने देवा और महादेवा दोनों का जिक्र करके बाराबंकी और आसपास के जिलों की राजनीति में सरगर्मी ला दी है। देवा शरीफ हाजी वारिस अली शाह की दरगाह है, जहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।  ऐसी मान्यता है कि दरगाह में मन्नत माँगने से मुराद पूरी होती है। तकरीबन वैसी ही मान्यता महादेवा के लोधेश्वर मंदिर और किंतूर के पारिजात वृक्ष को लेकर भी है।  
हाजी वारिस अली शाह सूफीवाद के वारसी तरीके के संस्थापक थे। 1819 में उनका जन्म हुआ और १९०५ में उनका निधन। उनकी बचपन से ही अध्यात्म में रुचि थी। उन्होंने पश्चिमी देशों की यात्राएं की,और कई जाने-माने लोगों को अपने तरीके की शिक्षा दी।  उन्होंने प्रेम को ही उत्तम कर्तव्य माना।  
 हर साल ‘सफर’ (चन्द्र आधारित) महीने में उनकी कब्र पर उर्स आयोजित होता है। जिसे देवा मेला कहते हैं। जिसमें देश के सभी हिस्सों और विदेशों से भी कई तीर्थयात्री उन्हें और उनके पिता कुर्बान अली शाह को श्रद्धांजलि देने आते हैं। उनके शिष्यों में हिन्दू भी बड़ी संख्या में शामिल थे। इसलिए यह देश की अकेली दरगाह है, जहां होली का त्यौहार भी बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।  दरगाह की होली में भी शामिल होने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।  
महादेवा मंदिर बाराबंकी की राम नगर तहसील के महादेवा गांंव में  घाघरा नदी के तट पर  स्थित है। यह बाराबंकी-गोंडा मार्ग से बायीं ओर लगभग 4 किलोमीटर दूर स्थित है।इसे लोधेश्वर महादेव मंदिर भी कहते हैं, और इसे लोध क्षत्रियों का धर्मस्थल कहा जाता है। मंदिर का शिवलिंग पृथ्वी पर उपलब्ध 52 अनोखे एवं दुर्लभ शिवलिंगों में से एक है। इस मंदिर के बारे में भी कहा जाता है कि मन में कोई इच्छा लेकर जाइये तो वह इच्छा जरूर पूरी होती है।  महा शिवरात्रि पर लगनेवाला फाल्गुनी मेला यहां का विशेष है। कानपुर और बिठूर से गंगा जल लाकर कांवड़िये भगवान शिव को चढ़ाते हैं, और अपनी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद माँगते हैं।  फाल्गुनी मेले की विशेषता यह भी है कि यहां आनेवाले लाखों श्रद्धालुओं में एक भी महिला भक्त नहीं होती है।  
 मान्यता है कि लोधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी।  महाभारत में कई प्रकरण हैं जहां इस प्राचीन मंदिर का उल्लेख है। कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान पांडवो ने कुल्छात्तर नामक जगह पर रूद्र यज्ञ का आयोजन किया। महादेवा से २ किलोमीटर उत्तर, नदी के पास आज भी कुल्छात्तर में यज्ञ कुंड के प्राचीन निशान मौजूद हैं।  महादेवा में एक कुंआ आज भी पांडव-कूप के नाम से मौजूद है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इस कुंए के पानी में औषधीय गुण  हैं। जिसे पीने से कई बीमारियां दूर हो जाती हैं।  

इस पूरे इलाके में पांडव कालीन अवशेष बिखरे पड़े हैं। अज्ञातवास के दौरान जब पांडव यहां  छुपे हुए थे, तब बाराबंकी को बराह वन कहा जाता था और यहाँ घने और विशाल जंगल थे।  उन्होंने रामनगर के पास किंतूर क्षेत्र में पारिजात वृक्ष लगाया और गंगा दशहरा के दौरान खिलने वाले सुनहले पुष्पों से भगवान शिव की आराधना की। पांडवों की मां कुंती के नाम पर रखा गया, किन्तूर गांव, जिला मुख्यालय बाराबंकी से लगभग 38 किलोमीटर दूर पूर्वी दिशा में है। यहां कुंती द्वारा स्थापित कहे जानेवाले मंदिर के पास, एक विशेष पेड़ है जिसे ‘पारिजात कहा जाता है। पारिजात कल्पवृक्ष का ही एक प्रकार है। जिसमें मनोकामना पूरी करने की शक्ति होती है।  
 कहना न होगा, सेक्युलर कही जानेवाली राजनीति का एक बड़ा हिस्सा देवा शरीफ के गिर्द जाता रहा है।  २०१९ के चुनाव प्रचार में प्रियंका गांधी उन्नाव होते हुए बाराबंकी पहुँची तो तुरंत ही देवा शरीफ गयीं।  वे वहां शाम की नमाज़ के वक्त पहुँची। इसे बहुत शुभ माना गया, और इस बात का भी खूब प्रचार हुआ कि ऐसे शुभ वक्त पर आने से उनकी चुनावी मनोकामना पूरी होगी। देवा शरीफ का व्यापक असर रहा है और सरकारी मान्यताओं में भी उसे लेकर कभी कोई कमी नहीं आयी।  महादेवा को जरूर सरकारी तौर पर वैसी कोई मदद या मान्यता नहीं मिली है।  कांवड़ियों के लिए किये जानेवाले बंदोबस्त को लेकर भी लोगों को शिकायत रही है। योगी आदित्यनाथ ने उसी असंतोष को सामने रख दिया है।  जिले में विकास कार्यों के लॉन्च के मौके पर आयोजित समारोह में मुख्यमंत्री ने कहा, ” हमारी सरकार भेदभाव नहीं करती है। मैंने कहा है कि अगर देवा शरीफ को विकसित करना है तो महादेव मंदिर भी विकसित करना है, एकतरफा विकास नहीं होगा. विकास का लाभ सभी को मिलना चाहिए.” 
महादेवा लोध क्षत्रियों का  धर्म स्थल है।  इस तरह की तुलना सपा-बसपा राज के किन्हीं पुराने घावों को उकेर सकती है, जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा।    

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