जौनपुर तहजीब का शहर; शिक्षा, साहित्य, संस्कृति की राजधानी

साकीनाका बलात्कार और बर्बरता के मामले को सामना के संपादक और राज्य सभा सांसद संजय राऊत ने जौनपुर पैटर्न की गन्दगी से जोड़ कर मुंबई के उत्तर भारतीयों को एक बड़ी तोहमत से घेर दिया है। घर-परिवार से दूर रह कर जो लोग काम कर रहे हैं, इस तरह की समस्या की जड़ वे हैं, ऐसा कहना और मानना पूर्वांचल के लोगों को उचित नहीं लग रहा। शिवसेना और मनसे २००७-०८ से ही मुंबई और आसपास के इलाकों में अपराध की घटनाओं के लिए परप्रांतीयों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। क्या ऐसा है? इन बातों को लेकर शिवसेना या मनसे ने कभी कोई आंकड़े नहीं पेश किये। महाराष्ट्र सरकार ने भी इस आरोप की जांच करके कभी कोई तथ्यगत जानकारी नहीं दी।  बस, हवा में १२-१५ साल से एक नारा है- परप्रांतीय कहां से आते हैं , कहां जाते हैं, उसे जांचो, उनके रजिस्टर रखो। यह नारा ऐसे लगता है, जैसे किसी और ग्रह से कोई प्राणी आ गए हों, जिन्हें आप जानते-पहचानते न हों।  
किसी तथ्यगत जांच के बिना परप्रांतीयों को आपराधिक घटनाओं या उनकी बढ़ोत्तरी से जोड़ देना गलत है। जो भी स्थिति है, उसका तथ्यगत विश्लेषण किया जाना चाहिए।  नहीं है तो लांछन वापस लिए जाने चाहिए। और वैसी कोई स्थिति है तो सरकार और समाज को मिल कर उस स्थिति में सुधार करने की कोशिश की जानी चाहिए। इसके लिए पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान और पूर्वांचल प्रथम की ओर से सरकार से तो अनुरोध किया ही जा रहा है, खुद भी आंकड़े निकाल कर उनका विश्लेषण क्या जाएगा। 
ऊपर के प्रकरण के हवाले से हम यह एक संवाद शुरू कर रहे हैं–जौनपुर संवाद। जिसमें थोड़ी सी बात ऊपर कहे की भी होगी, थोड़ी जौनपुर क्या है, इसे भी जताया जाएगा; लेकिन मोटी बात पुर्वांचल के विकास की होगी। 
 दशहरे से;शुरू हो रहा है यह स्तम्भ।  शामिल हों अपनी बात के साथ। हम इसके लिए समुचित प्लेटफार्म भी देंगे।  और उसे डिजिटलाइज करके स्थाई भी करेंगे।  साथ ही, २५ दिसंबर के अंक की कवर स्टोरी भी बनाएंगे।  स्वागत है।   लेकिन लगे हाथ, जौनपुर को लेकर थोड़ी भूमिका तो दे ही दें– कभी काशी या कभी अवध के साथी-सहयोगी या मातहत के तौर पर जौनपुर की सदा से ख्याति रही है। इस जगह को जौनपुर नाम तुग़लक़ वंश के सुलतान फ़िरोज़  शाह तुगलक ने  दिया।  उनके चचेरे भाई और पूर्ववर्ती सुलतान मुहम्मद तुग़लक़ की चिकित्सा शास्त्र में गहरी दिलचस्पी थी। वही मुहम्मद तुग़लक़ जो राजधानी दिल्ली से हटा कर दौलताबाद ले गए थे, और जिन्होंने चमड़े का सिक्का चलाया था। चिकित्सा शास्त्र में दिलचस्पी रखने के कारण मुहम्मद तुग़लक़ को जौना खान कहा जाने लगा था। जौना यानी च्यवन। च्यवन ऋषि। 
जौनपुर नाम पड़ने से पहले,इस जगह का जो भी नाम रहा हो, जौनपुर में बहनेवाली माता गोमती को ऋषि वशिष्ठ की पुत्री होने का गौरव प्राप्त रहा है।  उन्हें आदि नदी कहा गया है।  हमारी खोज के अनुसार जौनपुर-जफराबाद राजा ऋतुपर्ण की राजधानी रही है।  यह आर्यक नाग की भी राजधानी थी। नागमाता जरत्कारु यहीं जन्मी।  ऋषि जरत्कारु से उनका ब्याह यहीं हुआ। उनके बेटे आस्तिक यहीं पले -बढे।  राजा जन्मेजय के सर्प सत्र यज्ञ में नागों की उन्होंने ही रक्षा की।  यह जो ईरान का जरथुस्त्री धर्म है, उसका भी उन्होंने ही प्रवर्तन किया। महात्मा बुद्ध के पहले एक लम्बे समय तक दुनिया का सबसे बड़ा धर्म वही था। कृष्ण और बुद्ध के बीच की कड़ी वही है।   
फिर, पुराना जौनपुर-जफराबाद अष्ट ताराओं का भी प्रधान केंद्र था।  हिन्दू धर्म में तो भगवती तारा की बड़ी मान्यता रही ही है, बौद्ध धर्म में उन्हें स्त्री बुद्ध कहा गया है।  फिर, जफराबाद में ही मनहेच किला रहा है।  भारत की रक्षा का अन्तरकोट था यह। पूरे पूर्वांचल के योद्धा पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत पर लड़ने के लिए कन्नौज होते हुए यहीं से जाते थे।         

मध्य युग में भी जौनपुर का बड़ा महत्व रहा।  1394 से लेकर 1479 तक यहां शर्की सुल्तानों ने राज किया। उन्होंने तुग़लक़ वंश से सत्ता छीनी और लोधियों को सत्ता दी।  इस बीच अवध और गंगा-यमुना के दोआब का एक बड़ा इलाका उनके आधीन रहा। इब्राहिम शाह के राज में ( 1402 से 1440) बिहार तो शर्की सल्तनत का हिस्सा था ही, बंगाल पर भी चढ़ाई हुई, और पश्चिम में दिल्ली तक धावा बोला गया। अंतिम शर्की सुल्तान हुसैन शाह ने तो दिल्ली को इस तरह घेर लिया था कि दिल्ली के सुल्तान बहलोल लोधी ने केवल दिल्ली भर छोड़ देने की प्रार्थना की।  वह भी इस रूप में कि दिल्ली पर वे एक अधीनस्थ सुल्तान के रूप में राज करेंगे।   
शर्क यानी पूरब और पूरब के लोग। शर्की सल्तनत के दौरान कई बड़े वैभवशाली भवन, मस्जिदें और मकबरे बनवाये गए।  फिरोज शाह ने १३९३ में अटाला मस्जिद की नींव रखी थी,, इब्राहिम शाह ने १४०८ में इसे पूरा करवाया।  इब्राहिम शाह ने जमा मस्जिद और बड़ी मस्जिद को बनवाना शुरू किया।  इन्हें हुसैन शाह ने पूरा कराया।  शर्की शासन में  जौनपुर शिक्षा, संस्कृति , कला, साहित्य और संगीत का केंद्र बना। जिसकी खुशबू आज तक बनी हुई है।  जौनपुर को इन्हीं गुणों के कारण शिराज-ए -हिन्द कहा गया। शिराज ईरान का मशहूर शहर था।  जिसकी इन्हीं गुणों के लिए ख्याति थी। वह बाग़-बगीचों का भी शहर था। और, जौनपुर भी वैसा ही था।  ऋतुपर्ण।  जिसके पत्ते हर ऋतु में नवीन हो जाते थे।  जो ऋतुओं का पर्ण पहनता था।   
कैसे हो विकास पूर्वांचल का।  कितना सही है संजय राऊत का कहा।  और क्या है जौनपुर पैटर्न। लिखें और भेजें।  उसे हम सहेज देंगे। साथ में, इन मुद्दों को लेकर हम भी करेंगे आप तक पहुँच कर बात १५ अक्टूबर से। डिजिटल माध्यमों में भी जरिया।  और सीधे पहुँच कर भी।  आज यह तीन लेने की यह एक फौरी प्रतिक्रिया मुंबई, साकीनाका में रह रहे आजमगढ़ का रहनेवाले श्री अरशद अमीर सैयद की।  श्री अरशद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उत्तर मध्य जिले के अध्यक्ष हैं।  

अतुल सिंह ओलंदगंज, जौनपुर, ५ अक्टूबर, २०२१ 

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