उद्धव जी धन्यवाद, पर संजय राऊत खेद व्यक्त करें और सरकार श्वेत पत्र निकाले
दशहरा रैली में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बहुत अच्छी बात कही है। उन्होंने शिवसेना नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे मराठी और गैर-मराठी का कोई भेदभाव न करें। शिवसेना का आधार हिंदुत्व है। इसमें कोई विभाजन नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि ९२-९३ के दंगे के समय यह शिवसेना ही थी जिसने हिन्दुओं को `दुश्मनों’ से बचाया था,. उस समय बाला साहेब को धमकियाँ भी मिली थीं , लेकिन वे इन धमकियों से झुके नहीं। उन्होंने भाजपा पर तंज भी कसा कि जो लोग दावा करते हैं कि बाबरी मस्जिद उन्होंने गिराया, वे लोग ९२-९३ के दंगे के समय बिलों में घुस कर बैठे थे।
यह बयान आगामी महानगरपालिका के चुनाव के मद्देनज़र दिया गया है, जिसमें शिवसेना का मुंबई का मूल आधार दांव पर है। शिवसेना मुंबई हारी तो महाराष्ट्र को देर तक नहीं संभल पाएगी। मुंबई और आसपास के इलाके शिवसेना के राजनीतिक और आर्थिक दोनों किस्म के आधार हैं। मुंबई के दंगे की बात उठा कर शिवसेना ने ऐसा राग छेड़ दिया हैं जिसमें साफ़ है कि मनपा चुनाव में कांग्रेस से उसका समझौता नहीं होगा। और, इस चुनाव में गोलबंदी के लिए ९२-९३ के दंगे के मुद्दे भी उठेंगे और श्रीकृष्ण कमीशन की रिपोर्ट आदि को लेकर भी बात होगी। ऐसा हुआ तो कांग्रेस और शिवसेना की बीच ही नहीं, शिवसेना और राष्ट्रवादी पार्टी के बीच भी विवाद गरमायेगा। राष्ट्रवादी के मुंबई प्रमुख नवाब मालिक कभी नहीं चाहेंगे कि ९२-९३ के दंगों का मामला उठे तो राष्ट्रवादी पार्टी शिवसेना के साथ खड़ी दीखे। पवार साहब भी ऐसा नहीं चाहेंगे। मुंबई दंगों के दौरान श्री पवार की भूमिका को लेकर जो नकारात्मक पब्लिसिटी हुई थी,राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी को समय-समय पर काफी नुकसान हुआ है।
दुश्मन कौन? इस मुद्दे पर हम आगे लिखेंगे, लेकिन अभी हिन्दू समाज के भीतर की ही बात करते हैं, इसलिए कि अभी साकीनाका प्रकरण को लेकर जौनपुर पैटर्न की गन्दगी का मामला और उत्तर भारतीय मेयर चुने जाने की मांग का मामला फिजां मे नंबर एक पर है। कोई भेदभाव न किया जाए, मुख्यमंत्री जी का यह बयान स्वागत योग्य है। लेकिन उस लांछन का क्या जो साकीनाका बलात्कार प्रकरण को लेकर सामना के संपादक और राज्य सभा सांसद संजय राऊत समस्त उत्तर भारतीय समाज पर लगा चुके हैं। अव्वल तो कोई जौनपुर पैटर्न तलाशना और उसे किसी कल्पित जौनपुर पैटर्न की गन्दगी से जोड़ना संजय राऊत के दिमाग की उपज हो सकती है, लेकिन बयान तो शिवसेना के ही खाते से आया है, तो उस बयां को वापस कौन लेगा? उसके लिए खेद और अफ़सोस कौन जतायेगा? या सब कुछ पूर्वांचल के लोगों के सीने पर सजायाफ्ता कैदी जैसा एक ठप्पा लगा कर छोड़ दिया जाएगा ? बेहतर हो कि मुख्यमंत्री जी संजय राऊत से अपना बयान वापस लेने और खेद व्यक्त करने को कहें, ताकि स्लेट से वह कालिख हटे , जिसे श्री राऊत ने उत्तर भारत और पूर्वांचल के सारे लोगों पर लगा दिया है। बात इतनी न बढ़ती यदि उसी समय मीडिया में यह रिपोर्ट न आती कि मुख्यमंत्री जी ने भी पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि परप्रांतीयों के आने-जाने के रजिस्टर रखे जाएँ। वे कहाँ से आते हैं, और कहाँ जाते हैं, इसका पता लगाया जाए। ,उत्तर भारतीय और पूर्वांचल के लोगों का इस बात को लेकर चला आ रहा रंज कब हटेगा? २००८ से ही शिवसेना और मनसे दोहरा रही हैं कि मुंबई और आसपास के इलाके में होने वाले अपराध उत्तर भारतीयों की वजह से बढ़े हैं.. इस आरोप का कैसे निदान होगा? २००३ में शिवसेना के भीतर उनके और राज ठाकरे के बीच जब से स्पर्धी राजनीति शुरू हुई, उस समय से पूर्वांचल के लोगों को जो कुछ सहना पड़ा है, उसका जवाब कौन देगा?और ऐसा आगे न हो, इसका इंतज़ाम कौन करेगा?
समझा जा सकता है कि शिवसेना इस धारणा पर कैसे पहुँची है, इसका जवाब शिवसेना नहीं देगी। उसे मनपा चुनाव के बाद भी राजनीति करनी है, और प्रांतवाद को लेकर ध्रुवीकरण भी बनाये रखना है। उसके और मनसे के बीच राजनीति का संग्राम इसी दांव से सधता है। लेकिन, अब सरकार के मुखिया के तौर पर यह उनका कर्तव्य है कि वे पिछले कुछ वर्षों में मुंबई और आसपास के इलाके में हुए सारे अपराधों की समाजशास्त्रीय जांच कराएं, और इस बात को लेकर श्वेत पत्र जारी करें कि क्या हकीकत में मुंबई और आसपास बढे अपराधों के लिए उत्तर भारत और पूर्वांचल के लोग जिम्मेदार हैं, या कि यह एक सफ़ेद राजनीतिक झूठ है। हम उनसे इस बात की मांग करते हैं। उत्तर भारतीय और पूर्वांचल के लोगों द्वारा यदि कोई गलती हो रही होगी तो उसे भी सुधारने की जरूरत है, और शिवसेना और मनसे की तरफ से भी कोई गलती की जा रही हो तो उसे भी दुरुस्त करने की जरूरत है।
एक कदम आगे बढे हैं, तो कुछ कदम और आगे बढिये। मुख्यमंत्री जी, मराठी और गैर मराठी समाज दोनों आपके ऋणी रहेंगे।आपसी दुराव में दोनों ने बहुत कुछ खोया है। पूर्वांचल देश का दिल है। महाराष्ट्र रीढ़ की हड्डी। दोनों में दूरी नहीं होनी चाहिए। पूर्वांचल और महाराष्ट्र का गहरा नाता रहा है। जिसे संजय राऊत जौनपुर कह रहे हैं, वह काशी है। जो काशी महाराष्ट्र के भी मन-प्राण में बसता है। जिन्हें हिंदुत्व का अलमबरदार बनाना है, उन्हें काशी से जो पुराना रिश्ता था, उसे जानना, समझना और संजोना होगा। पूर्वांचल और महाराष्ट्र का रिश्ता संत ज्ञानेश्वर जैसे संत तय करते हैं। संजय राऊत जैसे आधे-अधूरे पत्रकार और राजनेता नहीं। इसलिए मुख्यमंत्री जी, निशाखातिर रहिये, शिवसैनिकों को मराठी और गैर मराठी का भेद-भाव करना छोड़ना होगा, इसमें सर्वाइवल इंस्टिंक्ट भी छिपा है।