इस तरह मरती है एक जीवनदायिनी नदी
ग्राउंड रिपोर्ट/ बिहार का बेलहरणी बचाओ अभियान
बिहार के तीन जिलों जमुई, बांका और मुंगेर से होकर बहने वाली जीवनदायिनी बेलहरणी नदी बेतहाशा अतिक्रमण की वजह से एक नाला बन गई है। इस मरती हुई नदी को अवैध कब्जों से मुक्त कराने और नदी के जल प्रवाह को अविरल बनाने के लिए कुछ पर्यावरण प्रेमी बरसों से अभियान चला रहे हैं। लेकिन सरकार के कान पर जैसे जूं ही नहीं रेंग रही है। पूर्वांचल प्रथम के विशेष प्रतिनिधि श्री गणेश प्रसाद झा बेलहरणी बचाओ अभियान के प्रमुख लोगों में हैं। २९ नवंबर, २०२१ को उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री को जो पत्र लिखा है, उसमें इस नदी के मृतप्राय होने की पूरी कहानी दर्ज़ है। इस चिट्ठी के जरिये देखें एक नदी के मरने की दास्तान —
माननीय प्रधानमंत्री जी, बिहार के जमुई, बांका और मुंगेर जिले के विभिन्न ग्रामीण इलाकों से होकर एक नदी गुजरती है जिसका नाम है बेलहरणी नदी। यह नदी जमुई जिले के बटिया जंगल से निकलती है और बांका जिले के बेलहर और मुंगेर जिले के संग्रामपुर, तारापुर, असरगंज और बरियारपुर प्रखंडों के ग्रामीण इलाकों से होकर गुजरती हुई मुंगेर जिले के घोरघट गांव के पास गंगा में मिल जाती है। यह बेलहरणी नदी इन जिलों की कृषि और वहां के किसानों के लिए एक जीवन रेखा के समान है। इन जिलों की हजारों-लाखों एकड़ खेती की जमीन की सिंचाई इसी जीवनदायिनी बेलहरणी नदी से होती आई है। सिंचाई के लिए बनाई गई नहरों में भी पानी इसी बेलहरणी नदी से ही जाता है। पर प्रशासनिक उदासीनता की वजह से इस नदी पर इलाके के दबंग लोगों ने पूरी तरह कब्जा कर लिया है। नदी की जलधारा पर हर जगह हुए इस अवैध कब्जे की वजह से यह नदी धीर्-धीरे खत्म हो रही है।
इस नदी पर हर जगह हुए स्थानीय लोगों के इस अवैध कब्जे की वजह से अब इस जीवनदायिनी नदी के अस्तित्व पर ही गंभीर खतरा पैदा हो गया है और यह नदी मृतप्राय होकर लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। कभी पानी से लबालब होकर कलकल करती बहनेवाली चौड़े पाटोंवाली यह नदी अब एक पतले-संकरे नाले की शक्ल में बहने लगी है। बेलहरणी नदी के जलग्रहण क्षेत्र में आने वाले कृषिक्षेत्रों के खेतों तक सिंचाई के लिए नदी का पानी पहुंचाने के लिए 1980 के दशक में बांका जिले के बेलहर प्रखंड में इस नदी पर बेलहरना जलाशय का निर्माण किया गया। इस जलाशय के निर्माण के बाद से ही इस नदी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा। जलाशय के निर्माण के बाद से इस नदी में जल प्रवाह कम होता चला गया। जल प्रवाह के कम होने से धीरे-धीरे लोगों ने नदी पर अतिक्रमण करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते इस नदी के किनारे बसे गांवों के लोगों में इस नदी की जमीन का अतिक्रमण करने की होड़ सी लग गई। और फिर कुछ ही सालों में जमुई जिले से लेकर बांका और मुंगेर जिले तक पूरी नदी पर हर जगह इलाके के दबंग लोगों ने नदी की जमीन पर कब्जा कर लिया। इन दबंगों ने नदी के दोनों किनारों की जमीन हथियाने के बाद नदी की जलधारा (रिवर बेड) यानी नदी के जल प्रवाह और नदी के पूरे बहाव क्षेत्र पर भी कब्जा कर लिया। नदी की जमीन और उसके बहाव क्षेत्र की जमीन पर हर जगह पक्के मकान, दुकानें, बाजार, इंट-भट्ठे, स्कूल, बस्तियां और कालोनियां खड़ी हो गईं हैं। नदी की जमीन पर जगह-जगह खेत-खलिहान भी बना लिए गए हैं। नदी तो अब बड़ी मुश्किल से ही दिखती है। जहां भी यह नदी दिखती है वहां यह सिर्फ एक संकरे-पतले नाले की शक्ल में ही बहती दिखती है।
नदी की जमीन पर हुए इस अवैध कब्जे और अवैध निर्माण के लिए इन जिलों और उनके प्रखंडों का स्थानीय प्रशासन भी कुछ कम दोषी नहीं है। इन जिलों के संबंधित प्रखंडों के प्रशासन ने इस बेलहरणी नदी की जमीन को इलाके के भूमिहीन गरीबों को इंदिरा आवास योजना / प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर बंदोबस्त कर पट्टा जारी किया। इलाके के लोग आरोप लगाते हैं कि संग्रामपुर अंचल कार्यालय में नदी की जमीन की बंदोबस्ती का पट्टा खूब बिका और धड़ल्ले से बिका। नदी की जमीन की इस सरकारी बंदोबस्ती के बाद से इस नदी की जमीन के अतिक्रमण का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अब तक बदस्तूर है और थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। रही सही कसर सरकार के द्वारा नाजायज ढंग से इस नदी पर दो जगहों पर सरकारी स्कूलों का निर्माण करा देने से पूरी हो गई। ये दोनों सरकारी स्कूल मुंगेर जिले के संग्रामपुर प्रखंड में बनाए गए हैं।
मुंगेर जिले के संग्रामपुर प्रखंड में बेलहरणी नदी में बने दो सरकारी स्कूलों में से एक सरकारी स्कूल बलिया ग्राम पंचायत के कुआंगढ़ी गांव में और दूसरा ददरी जाला ग्राम पंचायत के जाला गांव में बनाया गया है। ये दोनों सरकारी स्कूल बरसों से नदी के बीच में चल रहे हैं और अब काफी पुराने भी हो गए हैं। ये स्कूल पूरी तरह से बेलहरणी नदी की जलधारा और रिवर बेड पर बने हैं। इन दोनों सरकारी स्कूलों में तकरीबन 400 चात्र पढ़ते हैं। संग्रामपुर प्रखंड के अंचल कार्यालय ने शिक्षा विभाग को जानबूझकर नदी में स्कूल बनाने के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) जारी की। सूत्रों का कहना है कि शिक्षा विभाग के लिए स्कूल की इमारत बनाने का काम करने वाले ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए रिश्वत लेकर यह अनापत्ति प्रमाणपत्र दिया गया। इस अनापत्ति प्रमाणपत्र को लेकर ग्रामीणों ने एतराज तो किया, पर ग्रामीणों के इस आरोप की कभी कोई जांच नहीं की गई।
संग्रामपुर प्रखंड के जाला गांव में सैकड़ों मकान इस बेलहरणी नदी में बने हुए हैं। लगभग आधा जाला गांव ही बेलहरणी नदी में बसा हुआ है। परिवार बढ़ा तो गांव का विस्तार हुआ और लोगों ने नदी की जमीन पर नाजायज कब्जा करके घर बनाना शुरू कर दिया। और इस तरह नदी की बीच धारा में गांव बस गया। इसी तरह संग्रामपुर प्रखंड के कारीकोल-झुनझुनियां, पौड़िया और कुआंगढ़ी गांवों में नदी की जमीन का नाजायज अतिक्रमण कर सैकड़ों की संख्या में पक्के मकान बना लिए गए हैं। नदी को पाटकर मकान, दुकानें और बाजार भी बना लिया गया है। कारीकोल-झुनझुनियां गांव में तो मकान, दुकानों और बाजार के अलावा नदी की जलधारा पर मंदिर कॉम्प्लेक्स, स्मारक, निजी उद्यान, निजी मछली तालाब और खेत भी बनाए गए हैं। नदी की जलधारा पर कंक्रीट के पिलर बनाकर भी मकान-दुकान बनाए गए हैं।
कारीकोल-झुनझुनियां गांव में बेलहरणी नदी के किनारे बनी पक्की सड़क भी कहते हैं इस नदी की जमीन पर ही अतिक्रमण करके बनाई गई है। पांच दशक पहले तक यहां या इस होकर कोई सड़क नहीं थी और यहां बेलहरणी नदी ही अपनी पूरी चौड़ाई में बहती थी। नदी किनारे सिर्फ घनी कंटीली झाड़ियां होती थी और इलाका एकदम सुनसान हुआ करता था। न इधर से कोई रास्ता था और न इधर कोई आता ही था। यहां यह नदी अब सिर्फ एक नाले की शक्ल में बहती है। पहले लोगों ने नदी के बीचो बीच सड़क बनाई और फिर सड़क के दोनों तरफ नदी में ही मकान और दुकानें बना डाली। अब यहां नदी में एक लंबी रिहायशी कालोनी है और साथ-साथ एक बाजार भी। सब कुछ नदी की बीच जलधारा में। अब तो यहां भी नदी की जमीन हड़पने की होड़ सी लग गई है।
संग्रामपुर प्रखंड के कई गांवों में स्थानीय प्रशासन यानी अंचल कार्यालय ने प्रधानमंत्री आवास योजना (पुराना नाम इंदिरा आवास योजना) के तहत घर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों को इस नदी की जमीन की बंदोबस्ती की है और पट्टा दिया है। इस तरह सरकारी बंदोबस्त से भी इस बेलहरणी नदी में काफी सारे मकान बने हैं। नदी की जमीन पर अतिक्रमण करके बसे गांवों में स्थानीय प्रशासन ने राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत नदी में ही सामुदायिक भवन, चौपाल के चबूतरे, पेयजल संयंत्र आदि का निर्माण करा दिया है। अवैध रूप से बसे इन गांवों में बिजली भी पहुंचाई गई है। इस तरह इस नदी की अविरल जलधारा को पूरी तरह से बाधित कर देने के लिए राज्य सरकार की तरफ से भी काफी घातक और विनाशकारी प्रयास किए गए हैं। अगर कभी इस नदी में जोरदार बाढ़ आई तो अवैध रूप से नदी में बसे इन स्कूलों, गांवों और कालोनियों का डूबना तय है। फिर उससे जो जनहानि होगी उसके लिए राज्य सरकार और उसके महकमे ही जिम्मेदार माने जाएंगे।
बेलहरणी नदी पर हुए इस बेतहाशा अतिक्रमण की वजह से कई जगहों पर नदी की आधी या आधी से भी अधिक चौड़ाई पर अवैध कब्चा हो जाने की वजह से नदी की धारा अपनी लीक से खिसक गई है और दूसरे किनारे पर किसानों की नकदी जमीन का कटाव कर लिया है। इस तरह कई जगहों पर किसानों की नकदी जमीन कटकर नदी में समा गई है। और दूसरी तरफ अवैध कब्जा करनेवाले नदी को पाटकर नदी की जमीन पर घर-मकान बनवाकर मौज कर रहे हैं। उदाहरण के लिए मुंगेर जिले के संग्रामपुर प्रखंड के कुआंगढ़ी मौजा में जमीन का खसरा नंबर 214, 215, 216 और 218 कटाव से नदी में समाया हुआ है। उस जगह आधी से ज्यादा नदी को अवैध कब्जा करने वाले दबंगों ने पाट दिया है। वहां नदी की जमीन पर उन दबंगों ने कालोनी बना ली है। ऐसे उदाहरण इस नदी में कई और जगहों पर भी मिलते हैं।
इस बेलहरणी नदी पर अतिक्रमण से यहां के बहुत बड़े इलाके में जल प्रलय का भी खतरा है। इसलिए भी इस नदी पर से अतिक्रमण का हटाया जाना बहुत जरूरी हो गया है। जल प्रलय की आशंका बांका जिले के बीजीखरबा में बदुआ नदी पर बने एक पुराने डैम को लेकर है जिसका नाम हनुमान डैम है। इस डैम का एक डिस्चार्ज बेलहरनी नदी में छोड़ा गया है। हनुमान डैम से कई सिंचाई नहरें निकाली गई हैं और इस डैम के पानी से कई जिलों के एक बड़े भूभाग में खेतों की सिंचाई होती है। हनुमान डैम 1965 में बना है और जानकारों का कहना है कि यह डैम अब अपनी तय उम्र पूरी कर चुका है। यह डैम पुराना होने के कारण आज नहीं तो कल कमजोर होकर टूटेगा। इस डैम पर सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है जबकि डैम का इलाका घनघोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। इस तरह यह डैम हर समय खतरे के साए में है। इलाका नक्सल प्रभावित होने के बावजूद इस डैम को कोई सुरक्षा हासिल नहीं है। पहले भी नहीं रहा। कभी यह डैम टूटेगा तो इसमें जमा कम से कम एक लाख क्यूसेक पानी का एक बड़ा हिस्सा इस बेलहरणी नदी में भी आएगा और नदी पर हर जगह अवैध कब्जा होने के कारण पानी तेज गति से आगे नहीं निकल पाएंगा और पूरे इलाके में फैल जाएगा। इससे काफी तबाही मचने का अंदेशा है। ऐसा मैं नहीं कह रहा, बांका जिले के सिंचाई विभाग के वरिष्ठ रिटायर्ड पदाधिकारी और बरसों तक हनुमान डैम की देखरेख के लिए जिम्मेदार रहे इंजीनियर रामपुकार सिंह ऐसी आशंका जता रहै हैं।
इंजीनियर रामपुकार कहते हैं अगर किसी भी वजह से कभी यह डैम टूटा तो डैम में जमा एक लाख क्यूसेक पानी प्रचंड वेग से निकलेगा और डैम से लेकर 60 किलोमीटर दूर भागलपुर जिले के सुल्तानगंज और मुंगेर जिले के घोरघट तक तीन दिनों तक जल प्रलय की स्थिति हो पैदा जाएगी। इस जल प्रलय में कुछ-कुछ बादल फटने जैसी स्थिति होगी और ऐसा अनुमान है कि इस पानी के बहाव के रास्ते में आने वाली. सड़कें, पुल, मकान, गांव, शहर, बाजार, दफ्तर और बिजली और दूरसंचार जैसी तमाम संरचनाएं टूट-बिखर कर बह जाएंगी। रामपुकार जी का मानना है कि इस जल प्रलय में जानमाल का बहुत बड़ा नुकसान होगा। एक अनुमान के मुताबिक इस जल प्रलय से बांका, मुंगेर और भागलपुर जिले के तकरीबन एक हजार गांवों और कस्बों की लगभग पांच लाख की आबादी बुरी तरह प्रभावित होगी। इस तरह बांका जिले के बेलहर प्रखंड, मुंगेर जिले के संग्रामपुर, तारापुर, असरगंज, बरियारपुर और भागलपुर जिले के सुल्तानगंज प्रखंड के इलाके इस पानी के बहाव के रास्ते में आएंगे। इस जल प्रलय में भारी तादाद में मवेशी भी मारे जाएंगे।
इंजीनियर रामपुकार कहते हैं कि हनुमान डैम के टूटने की स्थिति में डैम का पानी मुख्य रूप से दो नदियों बदुआ और बेलहरणी नदी से होकर निकलेगा। इसलिए इन दोनों नदियों के किनारे बसे गांवों और कस्बों को ज्यादा खतरा होगा। अब चूंकि बेलहरणी नदी पर कई जगहों पर अतिक्रमण है और नदी की चौड़ाई इस अतिक्रमण से लगभग समाप्त हो गई है और नदी एक नाले की तरह बहने लगी है तो ऐेसे में डैम के पानी का फैलाव नदी किनारे के गांवों में होगा और एक बड़े इलाके के डूबने का गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा। इंजीनियर रामपुकार आशंका जताते हुए कहते हैं कि अगर यह डैम कहीं रात के समय टूटा तो इलाके के लोगों को बचाव के लिए कोई चेतावनी भी नहीं दो जा सकेगी क्योंकि यहां चेतावनी जारी करने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। रात के समय तो डैम पर कोई पहरेदार भी नहीं होता। ऐसे में हादसे की खबर लोगों को अगली सुबह ही मिल पाएगी, पर तब तक तो इलाके में तबाही मच चुकी होगी।
कुछ साल पहले बदुआ नही के दोनों किनारों पर बाढ़ से सुरक्षा के लिए बांध बना दिया गया है, पर बेलहरणी नदी में ऐसा कोई इंतजाम नहीं है। अगर इस बेलहरणी नदी के दोनों किनारों पर भी सुरक्षा बांध बना दिया जाए तो डैम के टूटने पर होने वाले जल प्रलय से इलाके की सुरक्षा हो जाएगी। पर इस नदी को अतिक्रमण से मुक्त कराना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। ब्रिटिश हुकूमत के समय बने सर्वे के प्रामाणिक नक्शे में बेलहरणी नदी की परिमाप यानी पैमाइश बताई गई है। नक्शे में जगह-जगह नदी का अलग-अलग खसरा भी बाकायदा दर्ज है। नक्शे से नदी की चौड़ाई कहां-कहां कितनी-कितनी है इसका आसानी से पता लग जाएगा। उसी सर्वे मैप को आधार बनाकर इस नदी का हर जगह सीमांकन कराया जाना चाहिए और फिर नदी पर से तमाम तरह के अवैध कब्जों यानी अतिक्रमण को हटाकर नदी को साफ कराया जाना चाहिए। नदी के अतिक्रमण मुक्त और साफ हो जाने से पर्यावरण भी सुधरेगा और इस प्राकृतिक जल स्रोत से इलाके की कृषि भी फले-फूलेगी।
बेलहरणी नदी को अवैध कब्जों से मुक्त कराने की मुहिम कई सालों से चलाई जा रही है, पर राज्य की सरकार और यहां का सरकारी महकमा इस तरफ कभी ध्यान नहीं देता। माननीय प्रधानमंत्री के कार्यालय और भारत सरकार के मंत्रालयों से भी इस बारे में कई बार पत्राचार हुआ है, पर बात कभी आगे नहीं बढ़ रही। (इस संदर्भ में देखें पीएमओ का आदेश पत्र- PMOPG/D/2017/0382662, Dated- 18/08/2017 और केंद्रीय जल संसाधन और नदी विकास मंत्रालय का आदेश पत्र- MINWR/P/2017/00229) प्रधानमंत्री कार्यालय और भारत सरकार के मंत्रालय मामले को आगे की कार्रवाई के लिए बिहार सरकार को भेज देते हैं, पर बिहार सरकार उसे दबाकर बैठ जाती है। बिहार सरकार पीएमओ और केंद्र सरकार के मंत्रालयों के उन आदेशों पर आगे कुछ भी नहीं करती। इस तरह मामला हर बार ठंडे बस्ते में चला जाता है। इस सिलसिले में राज्य सरकार की ओर से आज तक कुछ भी नहीं किया गया है। अतिक्रमण हटाने के लिए जिम्मेदार स्थानीय प्रशासन के अधिकारी कहते हैं कि हाईकोर्ट का आदेश लेकर आइए तभी नदी पर से अवैध कब्जे हटवाए जाएंगे। राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की इस बेरुखी की वजह से इस नदी में अतिक्रमण यानी अवैध कब्जा करने का सिलसिला आज भी जारी है और रोज नए निर्माण हो रहे हैं। इस सिलसिले में आपसे मेरी एक दफा फिर विनम्र प्रार्थना है कि आप मेरे इस निवेदन पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की कृपा करें और बिहार के जमुई, बांका और मुंगेर जिले से होकर बहने वाली इस बेलहरणी नदी को हर तरह के अवैध कब्जों से मुक्त कराकर नदी के जल प्रवाह को अविरल बनाएं।