जफराबाद के किले और जमैथा के अखड़ो देवी मंदिर के विकास की संभावनाएं बढ़ीं: जौनपुर में भगवती तारा की भी फिर स्थापना होगी

–शुभम सिंह, विशेष प्रतिनिधि 

जौनपुर जफराबाद के सामाजिक सांस्कृतिक विकास को लेकर पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान की कोशिशें रंग ला रही हैं। जफराबाद के मनहेच किले और जमैथा स्थित अखड़ो देवी के मंदिर के विकास की संभावनाएं प्रबल हो रही हैं, और इस बात के भी आसार हैं जौनपुर ,में भगवती तारा का मंदिर फिर बनेगा। जौनपुर की ये तीनों ही सामाजिक-सांस्कृतिक विरासतें बरसों से इस बजट का इंतज़ार कर रही हैं कि कोई उनकी सुध ले और जौनपुर के पुराने वैभव और उसकी मूल पहचान को फिर से बहाल करे।  
अखड़ो देवी मंदिर के विकास को लेकर उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्या से पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान के प्रतिनिधियों की दिसम्बर, २०१८ में लम्बी चर्चा हुई थी, और मार्च, २०१९ में अखड़ो देवी मंदिर के विकास को लेकर जमैथा में उनका कार्यक्रम भी प्रस्तावित था , जिसे कोरोना महामारी के कारण रोकना पड़ा था।  यह कार्यक्रम जौनपुर में पूर्वांचल के आर्थिक-औद्योगिक विकास और उसके लिए जरूरी सांस्कृतिक बदलाव को लेकर पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित किये जा रहे पांच दिवसीय सम्मेलन का हिस्सा था। कोरोना के कारण इस दिशा में की जा रही कोशिशें रुकी पड़ी थीं। लेकिन अब उन्होंने फिर जोर पकड़ा है।  उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष श्री स्वतंत्रदेव् सिंह से  जफराबाद किले और अखड़ो देवी मंदिर के विकास और जफराबाद किले में भगवती तारा का भव्य मंदिर बनाये जाने को लेकर बातचीत हुई है। अगले हफ्ते लखनऊ में इस सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा भी संभावित है। इन चर्चाओं के सूत्रधार मुंबई के जाने-माने हिन्दीभाषी नेता श्री विक्रम प्रताप सिंह और उनके साथी श्री संतोष काळे हैं।  उल्लेखनीय है कि जौनपुर में जो पांच दिनों का पूर्वांचल विकास सम्मेलन प्रस्तावित किया गया था, उसमें भी श्री विक्रम प्रताप सिंह की बड़ी भूमिका थी।  
जौनपुर आदिमाता वशिष्ठ पुत्री गोमती के किनारे बसा हुआ है। यह बहुत पुरानी बसाहट है। जफराबाद की भी यही स्थिति है।  दोनों बसाहटों के बाद में नाम बदले गए।  एक का नाम जौनपुर और दूसरे का जफराबाद किया गया।  आज जफराबाद कही जानेवाली बसाहट पर  जब दिल्ली में तुग़लक़ वंश के संस्थापक गयासुद्दीन तुगलक के बेटे जफर शाह  का अधिकार हो गया तो उसने इसका नाम बदल कर अपने नाम पर जफराबाद कर दिया। उसने इसे नये सिरे से बसाया। यह १३२१ के आसपास की घटना है। उसी तरह तुग़लक़ सुलतान फ़िरोज़ शाह ने आज जौनपुर कही जानेवाली बसाहट को नये सिरे से बसाया। फ़िरोज़ शाह ने इसका नाम अपने चचेरे भाई मुहम्मद बिन तुग़लक़ के उपनाम जौना खान के नाम पर जौनपुर रखा।  मुहम्मद बिन तुग़लक़ वही मशहूर सुलतान था जो राजधानी दिल्ली से दौलताबाद ले गया था और जिसने चमड़े के सिक्के चलाये थे। मुहम्मद तुग़लक़ चिकित्सा शास्त्र का भी अच्छा जानकार था। जिस कारण उसे जौना खान का उपनाम मिला था। जौना मूल रूप से च्यवन है, जिसका फारसी में जौना के रूप में अपभ्रंश हुआ है।  इस तरह देखें तो जौनपुर का असल नाम च्यवनपुर है।  पुरानी बसाहट को जौनपुर नाम १३५९ में दिया गया।  इस नामकरण  के पीछे की भी एक कहानी है।  बसाहट का नाम जौना खान के आधार पर किया जाए, यह ख्याल फ़िरोज़ शाह को सपने में आया।  यानी उस बसाहट में कुछ ऐसा था जो फ़िरोज़ के अवचेतन में ऋषि च्यवन के प्रतीक के रूप में घूमा। यानी आसपास चिकित्सकीय औषधियां, वैसे ही पेड़-पौधे।  हरा-भरा प्रांतर। गोमती का सुरम्य इलाका। और विद्वता और जानकारी का भी क्षेत्र।  काशी यदि अध्यात्म की नगरी थी तो जौनपुर कही गयी बसाहट में कुछ ऐसे गुण थे जो लोगों को च्यवन ऋषि की याद दिलाते थे।  बाद में तो जौनपुर को शीराज-ए -हिन्द कहा गया। शीराज ईरान का मशहूर शहर था।  विद्या की राजधानी और बाग़-बगीचों का शहर था शीराज़। इसलिए बरबस एक नाम याद आता है।  राजा ऋतुपर्ण का।  जौनपुर या जफराबाद निश्चित रूप से उनसे जुड़ा रहा।  बक्शा वह जगह रही जहां राजा ऋतुपर्ण राजा नल को अक्ष विद्या सिखाते थे और जहां उन्होंने राजा नल से अश्वविद्या सीखी। इसी तरह सिरकोनी महाराज हरिश्चंद्र की पत्नी रानी तारामती से जुड़ा हुआ है। बड़ा शाही किला तो करवदीर नाग की याद दिलाता ही है।  इसी करवीर को लेकर लोक मान्यता है कि करवीर को हराने के लिए श्री राम को यहां आना पड़ा था।   इस बारे में पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान के सचिव और इतिहास के शोधार्थी  श्री ओम प्रकाश कहते हैं- “ जौनपुर को  राजनीतिक और सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। इससे पूर्वांचल में काशी और अयोध्या के साथ-साथ नागमाता मनसा और भगवती तारा का एक बड़ा केंद्र स्थापित हो जाएगा, और भारत की वैश्विक ख्याति में भी बढ़ोत्तरी होगी। सामाजिक न्याय, और पर्यटन को बढ़ाने और भारतीयता को मज़बूती के साथ स्थापित किये जाते चले जाने के लिए भी यह जरूरी  है। ये सभी उद्देश्य जौनपुर शहर स्थित जमैथा गाँव के अखड़ो देवी मंदिर और जफराबाद के मनहेच किले के विकास से हासिल किये जा सकते हैं।  इससे क्षेत्रीय इतिहास लेखन की परंपरा भी आगे बढ़ेगी। ” वे कहते हैं-    
“१.  जौनपुर इतिहास प्रसिद्द आर्यक नाग की राजधानी रही है, और जमैथा गाँव स्थित अखड़ो देवी मंदिर नागमाता जरत्कारु का मूल स्थान है। जरत्कारु को नाग माता मनसा भी कहा जाता है। कोइरी, सोइरी, बरई और वैश्य समाज की ज्यादातर उपजातियां उन्हें अपनी माता के रूप में पूजती हैं। ये नागमाता जरत्कारु ही थीं, जिनके जरत्कारु नाम के ऋषि से आस्तिक मुनि का जन्म हुआ। जिन्होंने राजा जनमेजय के सर्प सत्र यज्ञ से तक्षक और दूसरे नागों की रक्षा की। उन्होंने नागवंश को ख़त्म हो जाने से बचाया।  यह कथा महाभारत में बहुत विस्तार से लिखी गयी है। श्वेताश्वतर उपनिषद आस्तिक मुनि ने ही लिखा। उन्होंने ही ईरान के पारसी धर्म की भी स्थापना की। आस्तिक मुनि का जन्म और उनका पालन-पोषण जौनपुर में ही हुआ था।  “अखड़ो देवी मंदिर का यदि विकास कर दिया जाता है, तो देश के ३० से ३५ फीसदी लोगों को उनकी जन्मदात्री माता का मूल स्थान मिल जाएगा, और वे सामाजिक रूप से भी मज़बूत होंगे।  पर्यटन के लिए भी श्री राम और बौद्ध परिपथ के साथ-साथ यदि नाग परिपथ भी विकसित किया जाए तो पूर्वांचल को इसका बड़ा लाभ मिलगा।     
“२. जफराबाद का मनहेच किला और जौनपुर शहर स्थित अष्टतारा मंदिर बरसों से इस बात का इंतज़ार कर रहे हैं कि कोई उनका उद्धार करे। मनहेच किला कभी काशी और कभी अयोध्या राज में रहा, और कन्नौज से लेकर पूर्वांचल तक फैले एक बड़े इलाके का मुख्य सैनिक ठिकाना था।  इसे अंतर्वेद कहा जाता था। पश्चिम सीमा प्रांत पर होने वाले शकों, हूणों, और मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमलों से देश के बचाव के लिए सैनिकों का बड़ा सुसज्जित दस्ता यहीं से जाता था।  इस किले से पूर्वांचल के लोगों को जूझने और देश के लिए मर मिटने की प्रेरणा मिलती थी। लोधी सुल्तानों के जमाने में इस किले को पूरी तरह ध्वस्त किया गया, ताकि पूर्वांचल के लोग दिल्ली सल्तनत के खिलाफ खड़े न हो सकें।  इस किले के ध्वस्त होने के बाद ही दिल्ली सल्तनत की सेनाएं बिहार और बंगाल की ओर बेरोक-टोक आगे बढ़ीं।  अभी भी किले की तकरीबन ५२ बीघा जमीन अतिक्रमण से बची हुई है।  इसे पूर्वांचल के शौर्य स्थल के रूप में विकसित किये जाने की जरूरत है। इससे पूर्वांचल का मान और सम्मान बढ़ेगा और लोगों में देश प्रेम की भावना भी मज़बूत होगी।  
“इस किले का उद्धार करते समय यहां भगवती तारा का एक भव्य मंदिर भी बनाया जाना चाहिए।  भगवती तारा हिन्दू और बौद्ध धर्म दोनों में समान रूप से पूजी जाती हैं। वे दस महाविद्याओं में से एक हैं, और बौद्ध धर्म में उन्हें स्त्री बुद्ध यानी बुद्ध का स्त्री रूप कहा जाता है। तिब्बत से लेकर बौद्ध धर्म से प्रभावित सभी देशों में उनकी भगवान बुद्ध के समान ही पूजा होती है। जौनपुर में भगवती तारा को स्थापित करना आवश्यक है। यही उनका मूल स्थान था। जो उनसे छीन लिया गया। वहां आठों तारायें स्थापित थीं, इसलिए उनके मंदिर को अष्टतारा मंदिर कहा जाता था। अटाला शब्द इसी का अपभ्रंश है।  यह अष्ट तारा मंदिर मनहेच किले के शासकों ने ही बनवाया था। सो, अष्ट तारा की, स्थापना मनहेच  किले में भी की जा सकती है। भगवती तारा को उनका मूल स्थान मिले, तो इस स्थापना को धर्म की समुचित स्थापना कहेंगे, और पूर्वांचल को देश और दुनिया का एक और गौरव मिलेगा। ” 

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