अवध किशोर : एक घनिष्ठ मित्र की याद्
धर्मयुग में उप-संपादक रहे जाने-माने पत्रकार श्री अवध किशोर पाठक का १५ जनवरी को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। अवध स्वाभिमान और स्वत्व से भरे थे, झुकना उन्होंने जाना नहीं था, और सधी हुई पत्रकारिता के लिए जिस संयम की अपेक्षा होती है, वह भी उनमें खूब थी। अवध किस तरह के इंसान थे,, इसे जाने-माने पत्रकार श्री अजामिल व्यास के शब्दों में सुनिए- “ अवध नहीं है, यह मुझे नहीं लगता। पता नहीं क्यों, अभी भी लगता है कि वह कभी भी मिल सकता है। ” श्री अवध किशोर को धर्मयुग में उनके साथी रहे श्री सुनील श्रीवास्तव की यह भावभीनी श्रद्धांजलि।—
मैं उन दिनों गाँव में था। फेसबुक या व्हाट्सएप से दूर। हाँ कभी-कभी फेसबुक देख लेता था ,लेकिन उतना नहीं ,जितना नोएडा में रह कर देखता था। ऐसे ही एक दिन फेसबुक देख रहा था कि मित्र टिल्लन रिछारिया की पोस्ट पर नज़र पडी। पढ़ कर मन बेचैन हो उठा।.इस खबर पर विश्वास करूं या नहीं । लेकिन टिल्लन के पोस्ट पर अविश्वास भी तो नहीं किया जा सकता ,। वह गैर ज़िम्मेदार नहीं हो सकते । मन के बोझ को हल्का करने की नियत से मैंने टिल्लन जी को फोन किया ,तो उन्होंने बताया कि खबर सही है.। उन्हें भी अवध की मृत्यु की जानकारी बहुत बाद में मिली थी.। पन्द्रह जनवरी, २०२१ को ही उसका शरीर नश्वर हो चुका था।
मैंने मुम्बई मित्र ओम प्रकाश सिंह को फोन किया । उसने भी अवध के न रहने की तस्दीक की । ओम का मन विषाद से भरा हुआ था –“ किसी को फुर्सत नहीं है सुनील भाई। सब अपनी अपनी आत्ममुग्धता में जी रहे हैं । सेल्फ सेंटर्ड हो गए हैं सब। अवध कवि नहीं था ,कहानीकार भी नहीं था ,राजनीतिक भी नहीं था ,यह सब होता ,तो धर्मयुग के मित्र अवश्य सिर्फ सूचना ही नहीं देते,,बल्कि संस्मरण भी लिखते। सुनील भाई तुम कुछ लिखो उसके बारे में । धर्मयुग में सबसे करीबी तुम्हीं तो थे. । इलाहाबाद की दोस्ती मुम्बई तक आ गई। साथ साथ इंटरव्यू देने से लेकर ज्वाइन के बाद भी साथ साथ रहे भी हो। .तुम भी तो कुछ लिखो । ,मेरी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है ओम प्रकाश। ,कैसे और क्या लिखूंगा ? कंधे पर लाश हो तो राम राम सत्य के सिवाय कुछ नहीं मुंह से निकलता है। .मैं असामान्य हो गया हूँ ओम प्रकाश। उसने कुछ बताया भी नहीं। इलाहाबाद से मुम्बई फिर गुडगाँव। आने के बाद तक उससे मेरी बात होती रही। .गुडगाँव में उसका बेटा मारुति में काम करता था और वह बेटे के पास रहने लगा था। .मेरी अंतिम मुलाक़ात अरुण ( अरुण वर्धन, वे भी कोरोना की भेंट चढ़ गये ) के साथ हुई थी वी पी हाऊस की कैन्टीन में । बहुत सी बातें हुई .। इलाहाबाद विश्वविद्याय से रिटायर होने के बाद जब नोयडा में फ्लैट लिया ,तो वह बहुत खुश हुआ ,और एक रात जम कर जाम टकराने का न्योता भी दिया था लेकिन इधर कई आपरेशन के दौर से गुजरने के बाद सोचा था मिलूंगा ,लेकिन लाक डाउन के कारण नहीं मिल पाया .। फिर पन्द्रह जनवरी के बाद उसने अपने आप बोलचाल बंद कर दी .ऐसा कैसे हुआ ?
ओम प्रकाश बहुत ही दुखी था। ओम शुरू से ही संवेदनशील है । .चलते चलते कुछ देखा नहीं कि इतना गंभीर हो जाता था ,जैसे अभी रो पडेगा। यही स्थिति उस समय भी थी। -,सुनील भाई मुझसे कुछ मत कहो। हम उस समय धर्मयुग के त्रिगुट थे न। .तुम्हारे जाने के बाद मुझे अवध ने ही संभाला था। . हम दो बचे थे मुम्बई में । उसका कद ज़रूर छोटा था , लेकिन हम सब से ज्यादा गहराई में उसकी जड़े थीं ।
.आपातकाल के समय जब सब जेल में जा रहे थे तो उसने रा जैसी गुप्तचर एजेंसी की नौकरी छोड़ दी थी और अमृत बाज़ार पत्रिका में नौकरी कर ली थी । कुछ दिनों तक वह डॉ प्रमोद सिन्हा के सम्पादन में निकलने वाली हिन्दी कहानी की पत्रिका नई कहानियाँ में सुशील राकेश के साथ सम्पादक मंडल में भी रहा .
एक किस्सा हमें याद आ रहा है । .यह किस्सा तुम्हे भी याद होगा ओम प्रकाश। .हम तीनो यानी हम ,अवध किशोर और तुम एक साथ लंच करने निकलते थे। चूंकि अवध लहसुन प्याज नहीं खाता था इसलिए वह अपने परमानेंट होटल नरसिंह लाज में खाता था और हम दोनों किसी भी होटल में चले जाते थे। .ज्यादातर शेरे पंजाब में ही जाते थे। खैर एक दिन भारती जी के कमरे से तुम निकले तो काफी गंभीर थे . ( वैसे जाने से पहले से ही गंभीर थे . ) .तुमको गंभीर देख कर अवध किशोर के मन में मज़ाक सूझा और उसने इशारा किया कि कमलेश्वर जी वाला इस पर आजमाया जाय । बस फिर क्या था । लंच के लिए जाते समय मैंने तुमसे कहा ,यार तुम्हारा चेहरा एक दिन के लिए उधार मांगूंगा । .तुमने कहा ले लेना ,जब मन होगा । .अवध ने कहा कब लोगे.मैंने कहा जब जूता खाने की इच्छा होगी। हम सब चुप रहे। तुम भी समझ नहीं पाये कि क्या हुआ। .बाद में जब तुम्हारी समझ में बात आई तो वह मुझ पर बहुत गुस्सा हुए थे । .फिर तुम्हारी समझ में बात आ गई कि यह सब अवध के कहने पर किया गया उसके बाद तुमने हमसे बात नहीं करनी शुरू कर दी थी। एक हफ्ते तक नाराज़ थे और हम तुम अगल बगल बैठते थे फिर भी लिख कर बात होती थी .खैर । .क्या क्या याद करू ओम प्रकाश ! यह कि वह शराब नहीं पीता था लेकिन बीयर की कई बोतले एक साथ साफ़ कर जाता था या यह कि मंत्री जी को समता संतरी कहता था और एक स्लोगन भी बनाया था उसने समता संतरी गणेश मंत्री , ,या यह कि मेरी घरेलू जिम्मेदारियां इतनी अधिक थीं कि मैं आर्थिक तंगी में रहता था और वह मेरी सहायता करता था ,लेकिन पैसे लौटाने पर लेता नहीं था , या यह कि यह कि उसके कहने पर मैंने भारती जी से बाहर लिखने की अनुमति माँगी थी और भारती जी ने मुझे लिखने की अनुमति दे दी थी और मैं धर्मयुग में रहते हुए तमाम पत्र पत्रिकाओं में लिखता था .और इस तरह अतिरिक्त पैसे मेरे पास आ जाते थे .या कि शराब का बिल मैंने कभी नहीं दिया हमेशा वही दिया करता था .अपने जेब से पैसे देकर प्रेस क्लब का मेंबर बनाया था और जिस दिन मुफ्त में शराब मिलती थी तो हमें साथ ले जाना नहीं भूलता था .एक बार मैंने उससे पूछा था कि तुम इमर्जेसी का विरोध तो करते हो लेकिन जनता पार्टी को क्यों नहीं सपोर्ट करते हो .तो उसने स्पष्ट कहा था कि जहां आर एस एस .सी पी एम् ,जनसंघ और समाजवादी एक साथ हों तो वह ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकते एक साथ । .बावजूद इसके वह जे पी का समर्थन करता था उनकी बहुत इज्जत करता था .इतना बड़ा आन्दोलन सिर्फ जे पी ही खडा कर सकते थे । .वह अपनी निजी घरेलू ज़िंदगी भी हमसे साझा करता था और बाज वख्त तो इतना भावुक हो जाता था कि आँखों से लोर टपकने लगता था .लेकिन बीयर पी कर वह कभी भावुक नहीं होता था। .मुम्बई में हमारी उसकी अंतिम मुलाक़ात तब हुई थी जब मै प्रभात खबर का सम्पादक था और कांग्रेस सेंटेनरी कवर करने गया था । .उस समय वह धर्मयुग छोड़कर .राजन गांधी के साथ एडवरटाईज का काम करने लगा था । .हम उसके आफिस में ही मिले थे। मैं कोलाबा के एक होटल में रुका था । उस दिन मुझे तत्कालीन कांग्रेस के कोषाध्यक्ष सीता राम केसरी से मिलना था। .जब फोन पर मैंने बताया तो उसने कहा “ साले पोलिटिकल लोंगों से भी मिलने लगे तुम ? खैर जैसे ही फुर्सत मिले आफिस आ जाना . चार बजे के आसपास मैं उसके आफिस गया . चाय राजन ने पिलाया .( राजन गांधी भी अब इस दुनिया में नहीं है .लेकिन यहाँ यह स्वीकार करने में तनिक भी हिचक किसी को भी नहीं होनी चाहिए कि धर्मयुग का सर्कुलेशन चार लाख के पार पहुंचाने में राजन गांधी की मेहनत भी थी अन्य कारकों को छोड़कर .) तीन चार दिन हमने खूब शराब पी । ,तुमसे धर्मयुग आफिस में ही मिला था .। भारती जी से उनके घर पर मिला था । .मुझे वह घटना नहीं भूल पाता , जब फिल्म अभिनेता अमोल पालेकर को उसने मोहन स्टूडियो में जमकर डांटा था । .हुआ यह था कि धर्मयुग के स्वतंत्रता अंक के लिए एक लेख अवध किशोर ने अमोल पालेकर से लिखने के लिए कहा था और अमोल पालेकर ने न सिर्फ लिखने के लिए हामी भरी थी बल्कि एक निश्चित तारीख को देने की बात भी कही थी .लेकिन अवध के कई बार याद दिलाने के बाद भी अमोल पालेकर ने वह लेख नहीं दिया और न लिखने के लिए मना ही किया था । .तारीख पर तारीख दे रहे थे अमोल .लेकिन लेख नहीं दिया । .एक शनिवार को हाफ डे के बाद हम और अवध मोहन स्टूडियो पहुँचगए जहां वह किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे । .उस समय शाट देकर अमोल आये थे और लंच कर रहे थे .हम दोनों सीधे अमोल के कमरे में पहुंचे जहां और भी तीन चार लोग थे । अवध और मुझे देखते ही अमोल खाना छोड़ कर खड़े हो गए औरे बैठने के लिए कहा। .बैठते ही जब अवध ने लेख माँगा तो अमोल ने कहा कि बस थोड़ा सा बाकी है कल आफिस में पहुंचा दूंगा । .इस बात पर अवध गुस्सा हो गया। .एक महीने पहले आप ने लिखने के लिए हामी भरी थी ,जब भी फोन करता तो आप कल पहुंचाने की बात करते रहे। ,अगर नहीं लिखना है तो मना कर देते ,हम दूसरे से लिखवा लेते। .आप से अच्छे लेखक धर्मयुग के पास हैं । .भारती जी से आप ही ने कुछ लिखने के लिए बोला था। .आप को नहीं लिखना है तो बोल देते .हमारा समय बर्बाद कर रहे थे आप .। अब आप मत लिखिए मै किसी और से लिखवा लूंगा । इसके बाद बिना चाय पिए हम चले आये । फिर सोमवार को अमोल पालेकर ने लेख दोपहर को लंच के बाद अवध के पास भिजवा दिया था।
ओम प्रकाश तुम उसके स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ थे । .वह ढोंग नहीं करता था। दोस्तों पर जान भी छिडकता था .लेकिन गलत बातों पर नाराज़ भी होता था। .मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ कि वह बहुत बड़े एक धनाढ्य परिवार से आता था। जब वह बी एच यूं में हास्टल में रहकर पढता था ,उस समय से उसके पास स्कूटर था .और अपने घर बलिया स्कूटर से ही आता जाता था। .वह दिखावे से हमेशा दूर रहा। .उसके जाने से एक मलाल हमेशा रहेगा कि उसका मूल्याङ्कन कभी हुआ ही नहीं जब कि उसने कई पुस्तकें भी लिखी और पत्रकारिता भी की । मौत और ग्राहक कभी भी आ सकते हैं। .ग्राहक के रूप में मौत आई और उसने मौत को भी निराश नहीं किया।
.शत शत नमन मित्र अवध। .